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पत्र : पर
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद! तेरा प्रश्न है:
"ये अनन्तानुबंधी वगैरह चार प्रकार के कषाय जो आपने बताए, उन कषायों को भौतिक प्रत्यक्ष उपमाओं से समझाने की कृपा करेंगे? अदृश्य और आध्यात्मिक विषय, प्रत्यक्ष उपमाओं से विशेष स्पष्ट होता है।' __ चेतन, कर्मग्रंथ' में १६ कषायों को १६ प्रकार की उपमाएँ दी गई हैं, मैं इस पत्र में लिखता हूँ उन उपमाओं को। सर्वप्रथम चार प्रकार के क्रोध की चार उपमाएँ लिखता हूँ।
१. संज्वलन क्रोध जलरेखा समान होता है। जिस प्रकार पानी में लकड़ी से रेखा खींची जाय तो शीघ्र वह रेखा मिट जाती है, वैसे किसी भी निमित्त से साधु या साध्वी को क्रोध आ सकता है, परंतु शीघ्र वह क्रोध शांत हो जाता है।
२. प्रत्याख्यानावरण क्रोध रेणुरेखा समान होता है।
जैसे धूल में लकड़ी से रेखा की जाय तो वह रेखा शीघ्र नहीं मिट सकती है, कुछ समय के बाद मिटती है, वैसे व्रतधारी श्रावक-श्राविका का क्रोध शीघ्र शांत नहीं होता है, परंतु कुछ समय के बाद शांत होता है।
३. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध पृथ्वी रेखा समान होता है। जिस प्रकार पृथ्वी फटती है, दरार पड़ जाती है, वह दरार शीघ्र नहीं मिटती है। धूल, पत्थर, कचरा वगैरह गिरता है। दीर्घकालावधि में वह दरार भरती है। वैसे समकितदृष्टि जीव का क्रोध शीघ्र शांत नहीं होता है। एक वर्ष की दीर्घ कालावधि में शांत होता है।
४. अनन्तानुबंधी क्रोध पर्वतरेखा समान होता है।
जिस प्रकार पर्वत में दरार पड़ती है, फट जाता है पर्वत, वह जुड़ता ही नहीं है, वैसे मिथ्यादृष्टि जीवों का क्रोध शांत होता ही नहीं है। कई जन्मों तक क्रोध
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