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उल्लसित होता है। - तीर्थंकर जब मार्ग पर से गुजरते हैं तब देवेन्द्र जमीन पर नौ स्वर्णकमलों
को स्थापित करते हैं, उन पर पैर रखकर तीर्थंकर चलते हैं। मार्ग पर रहे हुए वृक्ष झुक जाते हैं, तीर्थंकर को प्रणाम करते हैं। - तीर्थंकर जब आहार करते हैं, दूसरे लोग उनकी आहार क्रिया नहीं देख
सकते। - तीर्थंकर नग्न होते हैं, परंतु दूसरे लोग उन की नग्नता नहीं देख सकते। - उनके उपदेश से प्रभावित होकर अनेक राजा, अनेक राणियाँ, राजकुमार,
श्रेष्ठि... वगैरह विरक्त बनकर दीक्षा ले लेते हैं। - तीर्थंकर स्वयं पूर्णता पाते हैं, दूसरे शरणागतों को पूर्णता दिलाते हैं! ऐसे तीर्थंकरों की भक्ति करने से हम भी तीर्थंकर नामकर्म बाँध सकते हैं।
- भद्रगुप्तसूरि
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