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पत्र :
प्रिय चेतन, धर्मलाभ,
तेरा पत्र मिला । तेरे प्रश्न का समाधान मिला, तुझे बहुत आनंद हुआ और तेरे चिंतन में विकास हुआ, जानकर मुझे संतोष हुआ।
तेरा नया प्रश्नः
'रात्रि के समय, दर्शनावरण कर्म के विषय में चिंतन करते करते 'थिणद्धि' निद्रा के विषय में रुकावट आ गई। 'थिणद्धि' निद्रा के विषय में पुनः समझाने की कृपा करें।'
चेतन, पाँच प्रकार की निद्राओं में अधमाधम-निकृष्ट निद्रा है थीणद्धि । इसका दूसरा नाम ‘थीणगिद्धि' भी है। संस्कृत भाषा में 'स्त्यानर्द्धि' अथवा स्त्यानगृद्धि भी कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में इस निद्रा को - Somnambulism कहते हैं।
‘थीणगिद्धि' शब्द का प्रयोग 'ठाणांग सूत्र' (स्थान-९) में, उत्तराध्ययन सूत्र (अध्ययन ३३, गाथा-५) में एवं विशेषावश्यक भाष्य (गाथा-२३४) में मिलता है।
'थीणद्धि' शब्द का प्रयोग 'समवायांग सूत्र' में मिलता है। जिस मनुष्य को इस ‘स्त्यानद्धि निद्रा का उदय होता है उसको ‘स्त्यानर्द्धिक' कहते हैं। प्राकृत भाषा में उसको 'थीणद्धिय' कहते हैं। यह शब्द 'विशेषावश्यक भाष्य' की २३५ वीं गाथा में एवं निशीथ भाष्य की १३५ वीं गाथा में हुआ है। दोनों गाथायें समान है!
पोग्गल-मोदय-दन्ते फरुसग-बड़ साल भञ्जने चेव ।
थीणद्धियस्स एए दिळंता होति नायव्वा ।। इसी गाथा में थीणद्धि निद्रा को समझाने के पाँच दृष्टांतों के नाम बताए गए हैं। १. मांस खानेवाला २. मोदक खानेवाला ३. हाथीदाँत निकालनेवाला ४. कुंभकार ५. वटवृक्ष की शाखा तोड़नेवाला.
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