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का संघटन होता है, वर्गणा बनती है, तब शरीर रचना के लिए वे वर्गणायें जीव ग्रहण करता है। किस जीव को कितनी पुद्गल-वर्गणा चाहिए, उस का निर्णय भी संघातन नामकर्म करता है। यह कर्म जीव का ही होता है पुद्गल-परमाणुओं का नहीं होता है। जीव के संघातन-कर्म के अनुसार, उन-उन पुद्गलों में परिवर्तन होता है और उस-उस जीव के लिए योग्य बनते हैं।
यह ‘संघातन नामकर्म' पाँच प्रकार का होता है।
पहला है औदारिक संघातनः औदारिक शरीर के लिए ग्राह्य वर्गणाओं के परमाणुओं का संघात-गुण प्रगट करनेवाला नामकर्म ।
दूसरा है वैक्रिय संघातनः वैक्रिय शरीर के लिए ग्राह्य वर्गणाओं का संघातगुण प्रगट करनेवाला नामकर्म । ____ पाँचवा है कार्मण संघातनः कार्मण शरीर के लिए ग्राह्य वर्गणाओं के परमाणुओं का संघात-गुण प्रगट करनेवाला नामकर्म ।
तात्पर्यार्थ यह है: उस शरीर के लिए ग्रहण की हुई पुद्गल वर्गणाओं में रहे हुए परमाणुओं का परस्पर पिंडीभाव यह ‘संघातन नामकर्म' करता है। - अलग-अलग शरीर की नई-पुरानी वर्गणाओं का मिश्रण करने का कार्य
'बंधन नामकर्म' करता है। - उन-उन परमाणु वर्गणाओं को शरीर रूप प्रदान करने का कार्य 'शरीर
पर्याप्ति' नामकर्म करता है। - शरीर की हड्डियों को सबल-निर्बल करने का कार्य 'संघयण नामकर्म'
करता है। - शरीर की आकृति-संस्थान तराशने का कार्य संस्थान नामकर्म' करता है। - शरीर में अंगोपांग उत्पन्न करने का कार्य 'अंगोपांग नामकर्म' करता है। - अंगोपांगों का स्थान निर्धारित करने का कार्य निर्माण नामकर्म' करता है। - पाँच इंद्रियों की रचना 'इंद्रिय-पर्याप्ति नामकर्म' करता है। - शरीर का रूप, गंध, रस और स्पर्श निश्चित करनेवाला 'वर्ण-गंध-रस
स्पर्श-नामकर्म' है।
चेतन, एक शरीर बनने में कितने प्रकार के कर्म काम करते हैं? शरीर विषयक चिंतन करें तो इतनी सारी बातों का चिंतन करना। शरीररचना में काम
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