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१४. कार्मण-कार्मण बंधन - आत्मा के साथ संलग्न कार्मण शरीर के साथ नए कार्मण पुद्गलों का संबंध करानेवाला यह कर्म है। शरीर और कार्मण शरीर का संबंध अनादिकालीन होता है। नए-नए कार्मण वर्गणा के पुद्गल जुड़ते जाते हैं। जोड़ने का काम यह नामकर्म करता है।
१५. तैजस कार्मण बंधन - तैजस और कार्मण शरीर एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। उसमें नए-नए तैजस-कार्मण वर्गणा के पुद्गल जुड़ते रहते हैं, जोड़ने का काम यह कर्म करता है।
चेतन, जिन-जिन पुद्गलों से शरीर बनता है, उन पुद्गलों के साथ परस्पर एकरस होना अनिवार्य होता है। अन्यथा शरीर का निर्माण हो ही नहीं सकता। पुराने पुद्गल नष्ट होते जाते हैं, नए पुद्गल जीव ग्रहण करता जाता हैं, तभी शरीर टिकता है। - जिस प्रकार हर जीव के शरीर भिन्न-भिन्न होते हैं उसी प्रकार ये बंधन नाम
कर्म भी भिन्न-भिन्न होते हैं। - प्रत्यक्ष रूप से औदारिक और वैक्रिय शरीर ही होते हैं। तैजस और कार्मण शरीर परोक्ष होते हैं। अपने शरीर में रहे हुए उन दो शरीर को हम स्वयं नहीं देख पाते हैं। कार्य से कारण का अनुमानकर उन दो शरीरों का अस्तित्व मानते हैं। पूर्ण ज्ञानी ही उन शरीरों को प्रत्यक्ष देख सकते हैं।
चेतन, आत्मा के साथ जो हमेशा रहनेवाले हैं वे तैजस और कार्मण शरीर परोक्ष रहते हैं। जो शरीर बदलते रहते हैं, उनको महत्व दिया गया
है। एक दिन नष्ट होनेवाले औदारिक एवं वैक्रिय शरीर को प्रत्यक्षता प्राप्त होती है।
जीवन-व्यवहार में यदि इस बात का अनुकरण हो तो घर में एवं समाज में शांति रह सकती है। घर के सदस्य कि जो स्थाई हैं, वे ज्यादा महत्व की अपेक्षा नहीं रखें, महत्व दूसरों को मिले, तो उसमें नाराज न हो और नवागन्तुक को अपने में मिला ले... तो कोई झगड़ा हो नहीं सकता है। घर और समाज की शान बढ़ती है। ___ जब साथ रहनेवाले शिकायत करते हैं 'हम सदैव साथ रहते हैं, फिर भी हमारी कदर नहीं है...और जो बहू नयी आई है, उसके मान-पान ज्यादा हो रहे हैं...।' तब घर में एकरसता नहीं रहेगी। ठीक है, नवागंतुकों को महत्व मिले...हम उनके साथ मिल जाएँगे।
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