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पत्र:
चेतन,
धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ । 'पर्याप्ति' विषय तेरे लिए नया है, इसलिए, एक बार पढ़ने से तेरे पल्ले नहीं पड़ेगा। दो-तीन बार तुझे पढ़ना होगा। तू अवश्य समझ जाएगा। तेरा नया प्रश्न
'आपने गत पत्र में लिखा कि जीव औदारिक वर्गणा के पुद्गल ग्रहण कर, आहार, शरीर और इंद्रियाँ बनाता है, बाद में श्वासोच्छवास, भाषा और मनोवर्गणा के पुद्गल ग्रहण करता है, तो क्या शरीर के औदारिक वर्गणा के साथ उन श्वासोच्छ्वास वगैरह पुद्गलों का संबंध हो सकता है?'
चेतन, हो सकता है संबंध। वह संबंध करानेवाला भी "बंधन" नाम का नामकर्म है। वह बंधन नामकर्म दो प्रकार के संबंध करवाता है:
१. शरीर रूप बने हुए औदारिक पुद्गलों के साथ नए पुद्गलों का संबंध करवाता है और
२. औदारिक पुद्गलों के साथ तैजस और कार्मण वगैरह वर्गणा के पुद्गलों का भी संबंध करवाता है।
चेतन, शरीर के पुद्गलों के परस्पर बंधन पंद्रह प्रकार के होते हैं, इस दृष्टि से बंधन नामकर्म भी पंद्रह प्रकार का होता है। आज मैं क्रमशः उन पंद्रह प्रकार के बंधन नामकर्म का स्वरूप समझाता हूँ
१. औदारिक-औदारिक बंधन - जिन औदारिक पुद्गलों से शरीर बनता है, उन पुद्गलों के साथ, नए औदारिक, पुद्गल के, जो जीव ग्रहण करता रहता है (आहार वगैरह) उन का संबंध करानेवाला यह नामकर्म है।
२. वैक्रिय-वैक्रिय बंधन - देवों का एवं नारकों के जीवों का शरीर वैक्रिय पुद्गलों से बनता है। उस वैक्रिय शरीर के साथ, नए वैक्रिय पुद्गलों का संबंध यह बंधन नामकर्म करवाता है। नए पुराने वैक्रिय पुद्गलों का सम्मिश्रण हो जाता
है।
३. आहारक-आहारक बंधन - जिन आहारक - पुद्गलों से आहारक शरीर
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