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का स्पर्श मृदु था और रस मधुर था । स्वभाव भी अच्छा था।
दुनिया के लोग शरीर की पसंदगी, विशेष कर रूप, रस, गंध और स्पर्श के माध्यम से करते हैं ।
चेतन, अज्ञानी मनुष्य नहीं जानता है कि हर जीव का शरीर पुद्गल से बना हुआ होता है और पुद्गल में रूप, रस, गंध और स्पर्श होते ही हैं। आत्मा में नहीं होता है रूप, नहीं होता है रस, नहीं होती है गंध और नहीं होता है स्पर्श ! चूँकि आत्मा पुद्गलात्मक नहीं है, चैतन्य के साथ रूप - रसादि का कोई संबंध नहीं होता। चैतन्य के साथ तो ज्ञान, दर्शन और चारित्र का संबंध होता है।
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चेतन, किसी भी व्यक्ति की पसंदगी का माध्यम रूप-रस-गंध और स्पर्श को नहीं बनाना। ज्ञान, श्रद्धा और संयम को माध्यम बनाना । क्षमा, नम्रता, सरलता वगैरह गुणों को माध्यम बनाना । इसमें भी, पति की पसंदगी में अथवा पत्नी की पसंदगी में तो रूप रसादि को माध्यम बनाना ही नहीं, अन्यथा जीवनयात्रा बिगड़ जाएगी। संबंध आत्मा से आत्मा का होना चाहिए। पुद्गल के साथ किया हुआ संबंध, कभी न कभी बिगड़ता ही है ।
अपकाय शीतल होता है,
- अग्निकाय उष्ण होता है।
इन रूप-रसादि का संबंध मात्र मनुष्यों के लिए ही होता है - ऐसा मत समझना। एकेंद्रिय जीवों के साथ भी इन बातों का संबंध है। इस बात को अच्छी
तरह समझना।
- पृथ्वीकाय (लोहा आदि) भारी होता है,
रुई (वनस्पतिकाय) हलका होता हैं !
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- मूँग (वनस्पतिकाय) का शरीर रुक्ष होता है,
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- एरंडी (वनस्पतिकाय) का शरीर स्निग्ध होता है। खरबूजा (वनस्पतिकाय) का शरीर कर्कश होता है।
- तड़बूच (वनस्पतिकाय) का शरीर मृदु होता है।
ऐसे असंख्य उदाहरण इस सृष्टि में मिलेंगे।
चेतन, वर्ण (रूप) के विषय में एक विशेष बात है। एक शरीर में अनेक रंग (कलर) हो सकते हैं। जैसे भ्रमर का रंग काला माना गया है, फिर भी उसका
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