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पौषध-व्रत यानी सर्वथा पाप निवृत्ति की धर्मक्रिया । गृहस्थों के लिए यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण है। पर्व दिनों में यह व्रत लिया हो और आयुष्य कर्म बँध जाय तो सद्गति का आयुष्य-कर्म बँध सकता है।
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चेतन, कभी पर्व के दिनों में नहीं, चालू दिनों में भी आयुष्य कर्म बँध सकता है। इसलिए पाप त्याग करना अति आवश्यक है । आने वाले (मृत्यु के बाद) जीवन का विचार करना बहुत आवश्यक है । "परलोकदृष्टि" का इस अपेक्षा से ज्यादा महत्व बन जाता है। बस ?
कुशल रहना,
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- भद्रगुप्तसूरि