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चेतन, मनःपर्यवज्ञान प्रकट होता है। सातवें गुणस्थानक में, परंतु बाद में छठे गुणस्थानक पर भी रहता है, चला नहीं जाता है। छट्ठा गुणस्थानक है सर्वविरतिमय संयम का, परंतु प्रमाद का बाहुल्य रहता है। फिर भी, वह प्रमाद मनःपर्यवज्ञान में बाधक नहीं बनता है। ज्ञान का अवरोधक नहीं होता है वह प्रमाद। ___ - मनःपर्यवज्ञानी महात्माओं की आत्मस्थिति छठे गुणस्थानक की होती है, फिर भी उनका ज्ञान अबाधित रहता है। ___ - इस सृष्टि में जितने भी मनुष्य हैं, उन सभी मनुष्यों के मनोगत भाव, मनःपर्यवज्ञानी जानते हैं।
- यह ज्ञान दो प्रकार का होता हैः (१) ऋजुमति (२) विपुल मति। मन के विचारों को सामान्यतः जाननेवाला ऋजुमति-मनःपर्यव ज्ञान होता है। मन के विचारों विशेष रूप से जाननेवाला विपुलमति मनःपर्यवज्ञान होता है।
- चेतन, तेरे प्रश्न का समाधान संभवतः हो जाएगा। परंतु जब तक तेरी इंद्रियाँ स्वच्छंदी हैं ओर कषायों की प्रबलता है तब तक दूसरों के मनोगत भावों को, विचारो को जानने की इच्छा नहीं करना। अनुमान भी नहीं लगाना। ज्यादातर अनुमान गलत सिद्ध होते हैं। व्यवहार में विचारों का प्राधान्य नहीं होता है, वहाँ वाणी का एवं कायिक प्रवृत्ति का प्राधान्य रहता है। मन-वचन-काया की प्रवृत्तिओं को विशुद्ध करता रहे, यही मंगल कामना,
___ - भद्रगुप्तसूरि
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