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लिए आरोग्य चाहिए, बुद्धि चाहिए, विनय चाहिए, महेनत और ज्ञान की अभिरुचि चाहिए, यह सब होते हुए भी) तो ये दो कर्म बँधते हैं।
० यदि हम पहले प्राप्त किए हुए ज्ञान का पुनरावर्तन नहीं करते हैं, तो ज्ञानावरण कर्म बाँधते हैं।
० दूसरों को पढ़ाने की हमारी शक्ति होने पर भी, प्रमाद से नहीं पढ़ाते हैं तो ज्ञानावरण कर्म बाँधते हैं।
० विद्यार्थी का उत्साह नहीं बढ़ाते हैं, तो भी ज्ञानावरण कर्म बँधता है।
चेतन, मतिज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरण कर्म, जीव कैसे-कैसे बाँधता है, यह बताया, अब ये दो कर्म, पूर्वजन्मों में बाँधकर आए हैं इस जन्म में, तो उन कर्मों का नाश कैसे करना, यह भी लिखता हूँ। - 'मैं बुद्धिमान हूँ, चूँकि मैंने मतिज्ञानावरण कर्म बाँधा हुआ है, मैं मूर्ख हूँ, अज्ञानी हूँ, चूंकि मैंने श्रुतज्ञानावरण कर्म बाँधा हुआ है, मुझे ये दोनों कर्मों का नाश करना है।' ऐसा संकल्प करना चाहिए। संकल्प के बिना सिद्धि प्राप्त नहीं होती है। - प्रतिदिन विनय से और बहुमान से पढ़ते रहो। पढ़ने पर याद नहीं रहे, तो
भी निराश हुए बिना पढ़ते रहो। - जो पढ़ते हैं, उनको सहाय करते रहो। पुस्तक वगैरह जो चाहिए, उनको
प्रेम से देते रहो। - पढ़नेवाले साधु-साध्वी को, यदि आपके पास अनुकूल निवास है तो दिया करो। पंडित यदि पैसा चाहता है तो पैसे दिया करो। - पढ़नेवाले साधु-साध्वी को निर्दोष परंतु अनुकूल भिक्षा दिया करो। - पढ़नेवाले साधु-साध्वी को पुस्तक-पेन वगैरह उपकरण दिया करो। - जो कुछ पढ़े, उसको भूलें नहीं। - चिंतन-मनन से ज्ञान बढ़ता है, इसलिए समय-समय पर शास्त्र चिंतन
करते रहना चाहिए। - श्रुत ज्ञान की भक्ति करते रहो। - ज्ञानभंडारों का निर्माण करो।
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