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पत्र :
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद! तेरा यह प्रश्न है:
'आपने मिथ्यात्व-मोहनीय के और चारित्रमोहनीय के जो बंध हेतु बताए, मैंने तीन बार पढ़ लिए। जीव क्यों ऐसी प्रवृत्तियाँ करता है? बिना सोचे, बिना समझे क्यों ऐसी पाप-प्रवृत्तियाँ करता रहता है? इन प्रवृत्तियों के परिणामों का विचार क्यों नहीं करता है? क्यों जड़ बुद्धि का बना रहता है? क्यों अज्ञान के घोर अंधकार में भटकता रहता है? कृपया गुरुदेव, मेरे मन का समाधान करें।'
चेतन, बुद्धि को जड़...और कुंठित करनेवाला एक कर्म है, उसका नाम है ‘मति ज्ञानावरण' और अज्ञान के अंधकार में भटकानेवाला कर्म है ' श्रुत ज्ञानावरण' । 'ज्ञानावरण' कर्म के पाँच प्रकारों में पहला प्रकार है मतिज्ञानावरण और दूसरा प्रकार है श्रुतज्ञानावरण।
सामान्यतया मति, बुद्धि, प्रज्ञा, अभिनिबोध... समानार्थ शब्द हैं! विद्वानों ने एक-एक शब्द को व्याकरण शास्त्र से खोलकर, अलग-अलग अर्थ बताए हैं, परंतु लोगों के व्यवहार में वे अर्थ विशेष महत्व नहीं रखते हैं।
जब तक मिथ्यात्व का गहरा प्रभाव जीव पर होता है, जीवात्मा की बुद्धि निर्मल नहीं होती हैं। मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से बुद्धि तीव्र हो सकती है, परंतु मिथ्यात्व की वजह से वह गंदी होती है। मिथ्यात्व से प्रभावित बुद्धि मनुष्य को ही नहीं, देवों को भी उन्मार्गगामी बनाती है।
मिथ्यात्व का उदय नहीं हो, सम्यग् दर्शन का प्रकाश आत्मा को प्रकाशित करता हो, उस समय मतिज्ञानावरण कर्म का प्रबल उदय हो,
उससे मति-बुद्धि प्रभावित हो, तो भी वह अल्प बुद्धि, मनुष्य को उन्मार्गगामी नहीं बनाएगी। अल्प बुद्धि होने की वजह से वह शास्त्रों की गहन बातें नहीं समझ पाएगा, ज्ञानी पुरुषों की गहन तात्त्विक बातें भी नहीं समझ पाएगा, परंतु उसकी श्रद्धा अविचल रहेगी। श्रद्धा के सहारे वह भवसागर को तैर सकता है।
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