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अभयकुमार की दीक्षा
८३ तपस्वी लगते हैं... हम उन्हें वंदना करें और उनके दर्शन करके... उनकी स्तवना करके जीवन को धन्य बनायें!'
राजा-रानी रथ में से नीचे उतरे... | मुनिराज के समीप जाकर उन्हें वंदना की। भावपूर्ण हृदय से उनकी स्तवना की और वापस लौटकर रथ में बैठे। राजमहल जा पहुंचे।
रात हुई।
शयनखंड में राजा-रानी भगवान महावीर के धर्मोपदेश की चर्चा कर रहे थे। राजा को नींद आ गई थी। चेल्लणा जग रही थी... उसके मानस पट पर नदी किनारे ध्यान करनेवाले मुनि की आकृति बराबर उभर रही थी। उसका मन चिंतित हो रहा था। यों सोच ही सोच में वह भी नींद की गोद में समा गई।
रात आधी गुजर चुकी थी। ठंढ़ी के झोंके ने चेल्लणा की नींद उड़ा दी। महल के बाहर चमड़ी को चीर देनेवाली सर्द हवाएँ सनसना रही थी। चेल्लणा को वे मुनि याद आ गये। उसके मुँह से निकल गया... 'ओह... इस जानलेवा सर्दी में उनका क्या हो रहा होगा?'
इधर श्रेणिक की नींद भी उचट गई थी... पर वह आँखें मूंदे ही लेटा रहा। उसे चेल्लणा के शब्द सुनने थे। इतने में रानी फिर बड़बड़ा उठी... 'ओफ्फोह... इस कातिल ठंढ़ के थपेड़ों में उनका क्या होगा?' श्रेणिक ने चेल्लणा के शब्द सुने | उसने सोचा : 'अजीब बात है... इतनी रात गये... रानी किसकी चिंता में जार-जार हुए जा रही है? क्या यह उसके किसी प्रेमी की चिंता में यह सब बड़बड़ा रही होगी... मन में घुल रही बात अक्सर नींद में होठों पर चली आती है! यदि यह सही है तो मेरी रानी मेरे प्रति वफादार नहीं है... वह किसी और को चाहती है... मुझसे भी ज्यादा इसे किसी और की चिंता है... क्या करना ऐसी बेवफा रानी को? मैं उसे जिन्दा छोड़नेवाला नहीं!'
राजा की नींद हराम हो गई। मरने-मारने के विचारों में पूरी रात राजा ने बितायी।
सबेरे-सबेरे राजा आनन-फानन अपने मंत्रणागृह में गया और वहाँ उसने अभयकुमार को बुलाकर कहा :
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