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अभयकुमार का अपहरण
७२ 'रास्ते में जब-जब भी खाने के लिए बैठा तो बुरे ही शकुन हुए... इसलिए मैं तो बिना कुछ खाये ही यहाँ आया हूँ।'
राजा चंडप्रद्योत भी सोच में डूब गया। लौहजंघ बेचारा भूखा ही भृगुकच्छ से चलता हुआ आया..., उसका राजा को बड़ा दुःख हुआ।
'अपशकुन क्यों हए? कभी ऐसा होता नहीं! और इस बार यह क्यों हुआ?' राजा को इस रहस्य का कुछ अतापता लगा नहीं! उसे उसी समय अभयकुमार याद आया! तुरंत उसने द्वारपाल से कहा : । 'जाओ, अभी-इसी वक्त अभयकुमार को यहाँ उपस्थित किया जाए।' अभयकुमार का पिंजरा राजा के पास लाया गया। राजा ने अभयकुमार को लौहजंघ के साथ हुई सारी घटना कह बतायी और अपशकुन होने का कारण पूछा।
अभयकुमार ने कहा : 'वह भोजन का डिब्बा यहाँ मेरे पास लाइये।'
लौहजंघ ने नाश्ते का डिब्बा अभयकुमार के हाथ में दिया । अभयकुमार ने अपनी पैनी बुद्धि से सोचा । अभयकुमार ने भृगुकच्छ के बारे में, वहाँ के लोगों के बारे में, और वह नाश्ते का डिब्बा कहाँ से लेता है... इस बारे में सवाल किये। लौहजंघ ने सभी बातों के जवाब दिये। अभयकुमार ने डिब्बा हाथ में लिया। डिब्बे में कुछ फुसफुसाहट सी आवाज सुनाई दी...| कुछ सरकता हुआ महसूस हुआ। उसने कहा : ___ 'डिब्बे में दृष्टिविष सर्प है...। यदि लौहजंघ ने रास्ते में इस डिब्बे को खोला होता तो वह वहीं जलकर राख हो जाता! यदि मेरी बात का सबूत चाहिए तो जंगल में इस डिब्बे को ले जाओ। वहाँ इसे खोलना... पर सावधानी से!'
डिब्बे को जंगल में एक पेड के तले जाकर खोला गया। जैसे ही डिब्बा खुला... एक सर्प बाहर निकला... उसकी दृष्टि सीधी पेड़ पर गिरी... और पेड़, जलकर राख हो गया!
मंत्रियों ने आकर यह बात राजा चंडप्रद्योत से कही। चंडप्रद्योत अभयकुमार की पैनी बुद्धि पर खुश हो उठा।
उसने अभयकुमार को लाख-लाख धन्यवाद दिये। कुछ दिन बीते।
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