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अंधी राजकुमारी देखे लगी
५. अंधी राजकुमारी देखने लगी
राजमहल सी रमणीय हवेली में श्रेणिक और सुनंदा आराम से दिन बिताते हैं! दोनों के बीच प्रेम हमेशा बढ़ता रहता है! सुनंदा श्रेणिक की हर इच्छा को समझने की कोशिश करती है... और उस मुताबिक अपने आप को ढालती है। श्रेणिक भी सुनंदा की भावना को जानता है... उसे पूरी करने की कोशिश करता है!
दोनों के बीच कभी कोई झगड़ा नहीं होता है! दोनों के बीच कभी कुछ मनमुटाव नहीं होता है! दोनों में कभी कोई खीझता नहीं कि गुस्सैल स्वर में डांटता-डपटता नहीं!
प्यार-मनुहार और इकरार के वातावरण में शादी किये हुए दोनों के दो साल गुजर गये, जैसे सावन के आकाश में बदली गुजरती हो!
श्रेणिक ने वहाँ से आगे परदेश में जाने का विचार छोड़ दिया! उसे मनचाहा सब कुछ वहीं मिल गया था।
एक दिन सुनंदा गर्भवती हई। उसका रूप-लावण्य दिन-प्रतिदिन निखरने लगा। खूबसूरती का दरिया उसके चेहरे पर निखरने लगा। परंतु कभी-कभी वह उदास हो जाती। उसकी आँखो में बरबस नमी छा जाती। फिर भी वह श्रेणिक की उपस्थिति में हँसती... खुशहाल रहने की ही कोशिश करती। ___ एक बार सुनंदा चेहरे पर उदासी का बोझ लिये... सर पर हाथ रखे अकेली बैठी थी...। इतने में उसकी माँ वहाँ जा पहुँची! माँ ने सुनंदा को देखा...। वह कुछ बोली नहीं, वैसी ही उल्टे पाँव वापस लौट आई...। पर कुछ ही देर में श्रेणिक स्वयं सुनंदा के पास जा पहुँचा। उसकी आँखों में नमी की बदली को तैरते देखकर श्रेणिक सकपका गया। 'क्या हुआ होगा इसे? मैं पूछूगा तो यह मुझे कुछ भी बताने से कतराएगी...।' श्रेणिक ने जाकर सुनंदा की माँ से कहा : 'जाने क्यों... आपकी बेटी दिन-प्रतिदिन सूखती जा रही है...! उसके मन में क्या है, क्या पता? तुम उसे आग्रह करके मन की बात का पता लगाओ...
और मुझे कहो! शायद उसके मन में कोई इच्छा हो, जो पूरी नहीं हो रही हो! यदि तुम उससे पूछोगी नहीं... और उसकी इच्छा पूरी नहीं होगी तो उसका जीना दुश्वार हो जाएगा!'
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