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तेजमतूरी का कमाल
२५
राजसेवकों को दुकान की ओर आते हुए देखकर धन सेठ ने कुमार से
पूछा :
'कुमार, राजसेवक मुझे बुलाने के लिए आ रहे लगते हैं; बोलो... अब क्या किया जाए ?'
कुमार ने अपने पास से एक रत्न निकालकर सेठ को दिया और कहा : 'इस रत्न को उत्तरीय वस्त्र के छोर से बाँध कर आप जाओ... यह 'राजवशीकरण' रत्न है। रास्ते में इस रत्न का स्मरण करते हुए जाना । इस रत्न के प्रभाव से राजा तुम पर प्रसन्न हो उठेगा । और ये अन्य रत्न जो मैं दे रहा हूँ... वे राजा को नजराना रख देना । राजा जरूर देवनंदि के साथ व्यापार करने का हक तुम्हें प्रदान करेगा।' श्रेणिककुमार ने दूसरे कीमती रत्नों से भरा थाल सेठ को दिया ।
राजसेवक आये सेठ की दुकान पर और सेठ से बोले
;
'सेठजी, चलिए ... राजसभा में ! राजा आपको याद कर रहे हैं!'
सेठ तुरंत खड़े हुए और थाल लेकर राजसेवकों के साथ चल दिये।
राजसभा में जाकर सेठ ने राजा को प्रणाम किया । और रत्नों से भरा हुआ थाल राजा को भेंट किया । 'राजवशीकरण' रत्न के प्रभाव से सेठ को देखते ही राजा प्रसन्न हो उठा । राजा यह पूछना भी भूल गया कि 'सेठ, तुम ये रत्न लाये कहाँ से? मैंने तो तुम्हारी सारी संपत्ति जप्त कर ली थी!'
राजा ने महामंत्री को आज्ञा की :
'महामंत्री, देवनंदि को जो भी व्यापार करना हो... वह धन सेठ के साथ ही करे । और कोई व्यापारी यदि ज्यादा धन दे भी सही... तब भी व्यापार करने का हक धन सेठ के पास ही रखना ।'
फिर राजा ने धन सेठ से कहा :
'सेठ, तुम इस परदेशी व्यापारी देवनंदि को जो भी माल चाहिए वह दिलाना ।'
धन सेठ ने कहा :
‘महाराजा, इस व्यापारी से पूछिए... इन्हें जो तेजमतूरी चाहिए वह नई चाहिए या पुरानी ही चाहिए ?' राजा तो धन सेठ की बात सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। 'इस धन सेठ ने तो मेरे राज्य की शान रखी।' राजा ने धन सेठ से कहा :
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