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सुनन्दा
१८ टुकड़े किये व सेठ और कुमार को दिये। दोनों ने दातुन-कुल्ला वगैरह किया। दातुन करते हुए कुमार की निगाहें सेठ की लड़की की निगाहों से मिली। पहली ही नजर में दोनों के दिल में स्नेह के अंकुर फूट निकले! लड़की तो घर में चली गई। दातुन-पानी करके सेठ व कुमार ने दुकान पर ही थोड़ा थोड़ा दूध पी लिया।
सेठ ने कहा : 'कुमार, तुम यहीं बैठो, मैं घर पर जाकर वापस आता हूँ।' कुमार दुकान पर बैठा। सेठ घर में गये, इतने में सेठ की बेटी ने सेठ को एक कोने में ले जाकर कहा : 'पिताजी, मुझे आप से एक बात कहनी है। हालाँकि मुझे ऐसी बात करते हुए शरम आती है... परंतु मन मानता ही नहीं है बात किये बगैर ।' ___ 'बेटी, तेरे मन में जो भी है... वह मुझे बता दे... इसमें तनिक भी संकोच रखने की जरुरत नहीं है! बोल, तुझे क्या कहना है?' ___ 'पिताजी, अपनी दुकान पर जो परदेशी युवक आया है... उसे पहली नजर देखते ही मेरे मन में न जाने क्या हो रहा है! समझ में नहीं आता... मैं क्या कहूँ? मुझे वह मन ही मन अच्छा लगने लगा है...। मैंने तो मन ही मन निश्चय कर लिया है कि यदि मैं शादी करूँगी तो इस युवक के साथ ही... यदि आप इस युवक के साथ मेरी शादी मंजूर नहीं करेंगे तो फिर मैं संसार का त्याग करके साध्वी हो जाऊँगी!'
सेठ ने कहा : 'पगली, क्या बक रही है तू? कुछ तुझे अता-पता भी है? यह युवक तो दूर देश से आया हुआ है!... अभी तो यह अनजान परदेशी है! मैंने इससे ज्यादा बातचीत भी नहीं की है! अभी तो तू जा... और घर में जाकर इस मेहमान के लिए भोजन का प्रबंध करने के लिए तेरी माँ से बोल!'
सुनंदा दौड़ती हुई... घर में अपनी माँ के पास गई! एक ही सांस में माँ से कहने लगी :
'माँ, अपनी दुकान पर दूर देश से एक परदेशी मेहमान आया है... उसके लिए आज बढ़िया से बढ़िया खाना बनाने का है!'
माँ ने कहा : 'बेटी, बढ़िया खाना बनाने के लिए बढ़िया चीजें चाहिए! घी चाहिए... शक्कर चाहिए... बादाम और इलायची चाहिए... बेटी, अपने पास पैसे कहाँ है?'
सुनंदा ने कहा :
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