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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुद्धि का बादशाह ४ खाता है... यह तुम सा समझदार या संस्कारी नहीं है! गंवई आदमी सा है... भेड़ बकरी चरानेवाले चरवाहे सा ! जो जिसके साथ बैठकर खाना खाये .... उसे वैसा ही जानना चाहिए... तुम ९९ समझदार हो... अच्छे हो... पवित्र हो!' यह सुनकर ९९ कुमार खुश हो उठे। खुद की प्रशंसा सुनकर कौन नहीं फूलता? फिर भी श्रेणिक के दिल को तनिक भी बुरा नहीं लगा ! चूँकि राजा ने श्रेणिक के सामने प्यार की निगाह से देखा था ! कुछ दिन बीत गये। एक बार राजा प्रसेनजित ने श्रेणिक को अपने पास बुलाया और कहा : ‘बेटे, मैंने दो बार तेरी परीक्षा ली... तू दोनों बार सफल रहा... मुझे इस बात का गर्व है... खुशी है... फिर भी मैं और परीक्षा लूँगा ।' श्रेणिक ने राजा से कहा : 'पिताजी, बड़ी खुशी के साथ आप मेरी परीक्षा कर सकते हैं! ' राजा ने कहा : 'बेटा, सामने यह जो घर जल रहा है... तुझे उसमें जाना है और तुझे जो पसंद हो वह वस्तु लेकर सही सलामत बाहर निकल आना है।' श्रेणिक तुरंत उस जलते हुए घर के पास गया। उसने एक गोदड़ी (रजाई) को पानी से गीला किया और ओढ़ ली । शीघ्र ही घर में घुसा और घर में पड़ा हुआ 'भंभा' नामक वाजिन्त्र लेकर शीघ्रता से बाहर निकल आया। वह राजा के पास गया। राजा ने उससे कहा : 'तुझे घर में से हीरे, मोतीजवाहरात कुछ भी लाना नहीं सूझा ? केवल यह वादित्र ले आया! अच्छा किया! अब गली-गली और घर-घर पर यह वादित्र बजाते हुए घोषणाएँ करते रहना! तू तो है भी पेटू आदमी! तेरे ९९ भाई जो छोड़ दे... रख दे... उसे खाकर पेट भरना...! मैं कहता हूँ वैसा करेगा तो समझना कि तू समझदार है... और तेरी आज्ञा सब मानेंगे।' राजा ने संकेतभरे गुप्त शब्दों में अपना राज्य श्रेणिक को सौंप दिया । श्रेणिक समझ तो गया... पर वह मौन रहा । राजा ने ९९ राजकुमारों को उनकी योग्यता के मुताबिक अलग-अलग गाँवों का राज्य बाँट दिया । ९९ कुमार राज्य पा कर नाच उठे। हर एक को राज्य मिला। वे तो हाथी-घोड़े खरीदने लगे... सेना इकट्ठी करने लगे । श्रेणिक ने कुछ भी नहीं किया ! इसलिए एक दिन सभी राजकुमारों के समक्ष राजा ने कहा : For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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