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विद्या विनयेन शोभते
७१ __अभयकुमार खुद कारीगरों को साथ लेकर जंगल में गये| चारों दिशा में अच्छे-अच्छे वृक्षों की खोज करने लगे। पूरब दिशा में उन्होंने एक बहुत बड़ा सुंदर और मजबूत वृक्ष देखा। कारीगर उस वृक्ष को देखकर नाच उठे :
'वाह भाई वाह! एकडंड महल का खंभा तो इस वृक्ष के तने में से ही बन जायेगा।' ___ कारीगर लोग तो आरी वगैरह निकालकर उस वृक्ष को काटने की तैयारी करने लगे। परंतु अभयकुमार ने उन्हें ऐसा करने से रोका और कहा : 'देखो, जिस वृक्ष को हम काटना चाहते हैं... पहले उसकी इजाजत लेनी चाहिए। शायद इस वृक्ष में कोई देव या यक्ष वगैरह का निवास भी हो!' यों कहकर अभयकुमार ने वृक्ष के सामने खड़े होकर दोनों हाथ जोड़े। सर झुकाकर वे बोले : 'यदि कोई देव इस वृक्ष पर रहते हों...या किसी देव-यक्ष का इस वृक्ष पर अधिकार हो तो हम इस वृक्ष को नहीं काटेंगे । अन्यथा हम वृक्ष काटने की इजाजत लेते हैं। __ इतने में वृक्ष की डालियों में से एक तेजभरा प्रकाश वर्तुल फैला...एक देव प्रगट हुआ और उसने कहा : ___ 'मैं तुम्हारे विनय एवं तुम्हारी नम्रता से बहुत खुश हूँ तुम्हारे ऊपर | यह वृक्ष मेरा है...। इसे तुम काटना मत। मैं तुम्हे राजगृही नगर के बाहरी इलाके में एक सुन्दर बगीचा दूँगा। उस बगीचे में सभी ऋतुओं के तरह-तरह के फूल खिला करेंगे। उस बगीचे के बीचोबीच मैं एक खंभे पर रानी चेल्लणा जैसा चाहती है, वैसा महल भी बना दूंगा।' ___ अभयकुमार ने सर झुकाकर देव का आभार माना। देव खुश होता हुआ अदृश्य हो गया । अभयकुमार अपने कारीगरों को लेकर वापस राजगृही नगरी में लौट आये। राजा श्रेणिक और रानी चेल्लणा भी बहुत प्रसन्न हुए देव की कृपा हुई जानकर।
उस देव ने अपनी दिव्य शक्ति के सहारे थोड़े दिनों में तो सुन्दर बगीचा बनाकर उस में कलात्मक और बड़ा सुन्दर एकडंड महल खड़ा कर दिया।
राजा-रानी को लेकर अभयकुमार नये बगीचे में आये। वहाँ पर उन्होंने सुंदर एकडंड महल देखा... सभी नाच उठे | खुश हो उठे।
रानी चेल्लणा ने राजा से कहा : 'हमलोग तो आज से ही इस महल में रहने के लिये आ जायें।' राजा ने हामी भर ली।
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