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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
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इसी देश में शोर्यपुर नाम का नगर था। उस नगर में भीम नाम का एक व्यापारी रहता था। उसके पास एक बैलगाड़ी थी। वह बैलगाड़ी को किराये पर घुमाया करता था । यही उसका धंधा था । कभी बैल बीमार हो गया हो तो भीम खुद अपने सर पर सामान ढो कर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया
करता था ।
भीम बड़ा लोभी था। उसकी पत्नी लोला भी एक नंबर की कंजूस थी । उनका इकलौता बेटा लाला भी पूरा मक्खीचूस था । मोटे-मोटे कपड़े पहनते और रूखा-सूखा खाना खाते । भीम कभी भी न तो किसी उत्सव में जाता था... न किसी धार्मिक स्थान में जाता था । कभी भी धर्म की बात या धर्म का उपदेश सुनने की तो बात ही नहीं थी! देवमंदिर देखकर वह मुँह बिचका कर रास्ता बदल लेता था ।
भीम ने अपनी पूरी जिंदगी कड़ी मजदूरी करके पूरे एक लाख रुपये कमाये थे। जब वह मौत के बिछावन पर सोया था... उसने अपने बेटे लाला को बुलाकर कहा :
‘देख, बेटा! मैंने अपना पसीना बहाकर एक लाख रुपये इकठ्ठे किये हैं । तू उन रुपयों को खर्च मत करना... पर सम्हाल कर रखना । मेरी तरह मेहनतमजदूरी करके पैसे इकट्ठे करना। मंदिर में जाना मत। साधुओं के पास तो जाना ही मत...। उनका उपदेश कभी मत सुनना । किसी भी उत्सव में कभी भाग नहीं लेना... नहीं तो सारे पैसे खतम हो जायेंगे!'
भीम तो मर गया पर लाला तो उससे भी दो इंच बढ़कर कंजूस निकला । बाप की सलाह उसने ठीक मानी । उसने भी जीवनपर्यंत गाढ़ी मजदूरी करके एक लाख रुपये कमाये । उसको एक बेटा था। उसका नाम था रूपा...। लाला ने भी मरते समय रूपा को वैसी ही सलाह दी। रूपा को दो लाख रुपये मिले! लाला तो मर गया। रूपा ने बाप-दादों का धंधा चालू रखा। उसने भी एक लाख रुपये कमाये । उसके बेटे का नाम था धना । धना को रूपा ने तीन लाख रुपये दिये और रूपा मर गया ।
धना भी ठीक रूपा के जैसा ही कंजूस था । उसने रूपा की एक-एक बात मानी। धना की पत्नी का नाम था धन्या । वह बड़ी सदाचारी - गुणी सन्नारी थी । उसमें उदारता का गुण था । उसे धर्म अच्छा लगता...। उसे मंदिर, भगवान, गुरुदेव सब बहुत अच्छे लगते ...। पर वो बिचारी क्या करती ? उसे धना की
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