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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
८
महाराजा मदनसुन्दर ने अपने राजसिंहासन के निकट ही एक सुन्दर सिंहासन रखवा कर उस पर मेघनाद को बिठाया । मेघनाद ने कुछ क्षणों के लिए आँखें मूँद ली... फिर उसने वक्तव्य चालू किया :
'हेमांगद नाम का एक विद्याधर आकाशमार्ग से जा रहा था। चंपानगरी के ऊपर से उसका विमान गुजर रहा था। उसने राजमहल के झरोखे में बैठी हुई राजकुमारी को देखा। वह राजकुमारी के सौन्दर्य पर मुग्ध हो उठा। विमान को आकाश में ही रोक कर सहसा वह नीचे आया... । राजकुमारी को उठाया और अपने विमान में सवार हो गया । और फिर विमान लेकर वह 'रत्नसानु' नामक पर्वत पर गया है। 'रत्नसानु' पर्वत यहाँ से एक हजार योजन जितना दूर है।
उस पहाड़ पर एक गुफा में उसने राजकुमारी को रखा है। उस विद्याधर ने राजकुमारी को मीठी-मीठी बातें करके उसे समझाने की भरसक कोशिश की कि 'तू मेरे साथ शादी कर ।' उसने काफी अनुनय किया। पर राजकुमारी ने उसकी बात का स्पष्ट इन्कार कर दिया। उसने कहा : 'जो आदमी मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण करेगा वही मेरा पति बनेगा । तू तो घोखेबाज है ! तूने कपटपूर्वक मेरा अपहरण किया है... मैं तेरा काला मुँह देखना भी नहीं चाहती!'
विद्याधर ने सोचा कि 'अभी तत्काल शायद यह मेरी बात नहीं मानेगी । कुछ दिन बीतने पर मैं उसे मना लूँगा । वह मान जायेगी ! फिर मैं उसे शादी के लिये राजी कर लूँगा। अभी उसे यहीं पर रख कर .... पूरा चौकी- - पहरा रखकर मैं अपने घर जाऊँगा ।'
उसने उस गुफा के द्वार पर राक्षसी विद्या को सुरक्षा के लिये रखा है और स्वयं अपने नगर में चला गया है। राक्षसी विद्या ने गीध पक्षी का रूप बनाया है। वह हमेशा कुछ न कुछ बोल रही मैं उसकी भाषा जान सकता हूँ...! समझ सकता हूँ। वह कभी कहती है : 'तुम कुशल हो...!' कभी बोलती है... ओह, तुम यहाँ क्यों आये ? भाग जाओ यहाँ से...!'
जो मनुष्य इस राक्षसी विद्या के वचन सुनता है उसे शीघ्र खून की उल्टी होती है! वह जमीन पर लोटने लगता है और तुरन्त मौत का शिकार बन जाता है। ऐसी राक्षसी विद्या को सुरक्षा - पहरे के लिये रखा गया है।
इस राक्षसी विद्या को जब तक वहाँ से हटाया न जाय तब तक राजकुमारी को वापस लाना संभव नहीं होगा । उसे दूर करने का उपाय है-शब्दभेदी बाणों
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