________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पराक्रमी अजानंद
१४४
गुरुदेव के पास रहकर संयम धर्म की आराधना करने लगे। उन्होंने धर्मशास्त्रों का गहरा ज्ञान प्राप्त किया ।
उन्होंने अन्य साधुओं को ज्ञानदान दिया। वे शील धर्म का सुंदर पालन करने लगे और शुभ भावनाओं में हमेशा लीन-तल्लीन रहने लगे।
कई बरसों तक उन्होंने निर्दोष साधु-जीवन जीया । आयुष्य पूरा होने पर, मर कर वे देवलोक में देवेन्द्र बने ।
देवलोक का आयुष्य पूर्ण होने पर वापस उन्हें मनुष्य जीवन मिला । आरोग्य, वैभव, सुंदर परिवार, यश और उत्तम भोगसुख प्राप्त हुए । यह सब त्याग कर उन्होंने दीक्षा ली। भगवान श्री चन्द्रप्रभस्वामी के वे गणधर हुए । केवल ज्ञानी बनकर उनकी आत्मा ने निज का आनंद, स्वयं का आनंद प्राप्त किया। शुद्ध-बुद्ध-कर्ममुक्त होकर सिद्ध हो गये।
इस तरह अजानंद की भाँति सत्वशील बनकर, श्रद्धावान बनकर, परोपकारी बनकर, वैरागी बनकर, साधु बनकर हम भी मोक्ष को प्राप्त करें ।
[ संपूर्ण ]
For Private And Personal Use Only