________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पराक्रमी अजानंद
१३६
‘राजन्, आज से ठीक पंद्रहवें दिन अजानंद एक लाख सैनिकों के साथ यहाँ पर आ धमकेगा। और उसके हाथों तुम्हारी हत्या होगी । '
ज्योतिषी का यह भविष्य कथन सुनकर राजा चंद्रापीड़ बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। परिचारकों ने शीतोपचार करके राजा की बेहोशी दूर की । तुरंत राजा ने अपने विश्वसनीय गुप्तचरों को बुलाकर उनसे कहा : 'अभी इस समय अजानंद कहाँ है...ठीक से पता करके मुझे शीघ्र ही इस बारे में समाचार दो ।'
गुप्तचर चारों दिशा में चले गये तलाश करने के लिए । चार-पाँच दिन बाद गुप्तचरों ने आकर 'अजानंद का कहीं अता-पता नहीं है' कहकर अपनी तलाश का काम पूरा कर दिया। अजानंद का पता उन्हें मिला ही नहीं था । राजा निश्चिंत हो गया। यों चौदह दिन बीत गये ! इतने में राजा ने एक बहुत बड़ी गलती कर दी। राज्य के महामंत्री पर गुस्सा करके उसे देश निकाले की सजा सुना दी।
सुबुद्धि मंत्री अपने इस अपमान से मन ही मन सुलग उठा था । वह राज्य की सीमा पर इधर-उधर घूम रहा था । इतने में उसने विराट सेना का काफिला आते देखा। हजारों हाथी ... सैकड़ों घोड़े ... हजारों रथ थे। और हजारों सैनिक शस्त्रसज्ज होकर पैदल चल रहे थे। मंत्री सेना के गुजरने वाले रास्ते के किनारे पर जाकर खड़ा हो गया। जैसे ही अजानंद का भव्य एवं सुंदर रथ उधर से गुजरा, उसने पास जाकर रथ में बैठे हुए अजानंद को प्रणाम किया। अजानंद ने रथ रुकवाया और मंत्री से पूछा :
'तुम कौन हो ? यहाँ पर क्यों खड़े हो ?'
मंत्री ने अपना परिचय दिया । उसने साथ राजा चंद्रापीड़ ने जो ज्यादती की उसका ब्यौरा कह सुनाया। अजानंद ने मंत्री का उपयोग कर लेने का सोच कर उससे कहा :
'महामंत्री, राजा ने तुम्हारे जैसे वफादार एवं निष्ठावान मंत्री का अपमान करके भयंकर गलती की है । पर तुम चिंता मत करो, जब मैं राजा बनूँगा तब तुम्हें अपना मंत्री बनाऊँगा ।'
अजानंद की बात सुनकर मंत्री प्रसन्न हो उठा। उसने कहा :
‘पराक्रमी, चंद्रापीड़ को खत्म करने का उपाय मैं तुम्हें बताऊँगा । तुम उसको मौत के घाट उतार कर राजसिंहासन की शोभा बढ़ाओगे वैसा मेरा विश्वास है।' यों कहकर मंत्री ने अजानंद को चंद्रापीड़ का वध करने का
For Private And Personal Use Only