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पराक्रमी अजानंद
'अब मैं क्या करूँ?'
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अजानंद ने कहा : 'तू चिंता मत कर। डर मत रख। मैं तेरे साथ हूँ... फिर तू क्यों चिंता करता है? वे दुश्मन राजा तो मेरे आगे कीड़े-मकोड़े जैसे हैं ! मैं खुद तेरे साथ आऊँगा । पर इससे पहले एक काम करना होगा ।'
'वह क्या?'
इस तोते के साथ एक पत्र तुम्हारे नगर के महामंत्री को भेजना होगा । हम वहाँ पहुँच रहे हैं, वैसा संदेश भेज दे ताकि उनको शांति हो और हिम्मत मिले ।'
अजानंद ने प्यार भरे शब्दों में तोते को संबोधित किया :
'शुकराज, तुमने मैना से जो बात कही वह सारी कहानी इस राजकुमार विमलवाहन ने सुनी है। तुम्हें महारानी ने बड़े लाड़-प्यार से रखा था ना ? अब उस उपकार का ऋण चुकाने का एक अवसर आया है। राजकुमार तुम्हें एक पत्र लिखकर देता है... वह पत्र महामंत्री को शीघ्र पहुँचाना है... पहुँचा दोगे ना?'
अजानंद की बात तोते ने मान ली।
राजकुमार का लिखा हुआ पत्र लेकर तोता आकाश मार्ग से उड़ा और उड़ान भरता हुआ जा पहुँचा विजयानगरी में । जाकर महामंत्री को पत्र दिया और वापस लौट आया ।
महामंत्री ने पत्र पढ़ा। पढ़कर उनके चेहरे पर चमक दमक उठी।
कुमार ने लिखा था - 'महामंत्रीजी, वहाँ की सारी घटनाएँ इस शुकराज के द्वारा मुझे मालूम हुई है । आप तनिक भी फिक्र न करें। मैं जल्द से जल्द वहाँ पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ... तब तक आप नगर का रक्षण करें ।' महामंत्री ने मन ही मन तोते का आभार माना । 'ओह! क्या किस्मत के खेल हैं...कभी पशु-पक्षी जैसे अबोल गूँगे प्राणी भी कितने उपकारी बन जाते हैं...जबकि अपने कहे जानेवाले आदमी धोखा देकर दुःख देनेवाले हो जाते हैं ।
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अजानंद ने रूपपरिवर्तन की गुटिका के द्वारा भारंड पक्षी [ एक विशालकाय पौराणिक पक्षी] का रूप रचाया । विराटकाय भारंड का रूप बना कर अजानंद ने राजकुमार विमलवाहन वगैरह को अपने पंखों में समेटते हुए आकाशमार्ग