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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मायावी रानी और कुमार मेघनाद 'सुधन... अब तुझे मैं अपना परिचय देता हूँ... इस नगर के राजा लक्ष्मीपति मेरे पिता हैं... मैं यह जानना चाहता हूँ कि तू कहाँ जा रहा है? और तूने यात्रा में यदि कुछ अजीब-सा देखा-सुना हो तो मुझे बतला!' __'महाराज कुमार... आपकी महेरबानी है मुझ पर, जो आप मुझ जैसे छोटे आदमी से बात कर रहे हो! ___ मैं तो परम पावन महातीर्थ शत्रुजय की यात्रा करने निकला हूँ... आप जानते ही हो कि शत्रुजय गिरिराज के एक-एक कंकर पर अनंत आत्माओं ने मुक्त दशा प्राप्त की है। ____ मैं जिस चंपानगरी का रहनेवाला हूँ... उस चंपानगरी के राजा का नाम है मदनसुन्दर! रानी का नाम है प्रियंगुमंजरी। उनकी इकलौती राजकुमारी है मदनमंजरी। मदनमंजरी यौवन में प्रवेश कर चुकी है...| उसका रूप अद्भुत है...। उसका लावण्य अद्वितीय है। उस पर माता सरस्वती की कृपा बरसती रही है। इसलिये तो वह अनेक प्रकार की कलाओं में निपुणता प्राप्त कर चुकी है। देवी लक्ष्मी के वरदान से उसे अपूर्व सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मदनमंजरी ने एक प्रतिज्ञा कर ली है कि 'जो आदमी व्याकरण, ज्योतिष और शिल्पशास्त्र में सूक्ष्म प्रज्ञावाला और इन विषयों का निष्णात होगा, सभी भाषाओं को जो जानता होगा, धनुर्विद्या इत्यादि कलाओं में पारंगत होगा... वैसे पुरुष के साथ ही मैं शादी करूँगी।' राजा मदनसुन्दर ने चारों तरफ वैसे राजकुमार की तलाश करवायी, पर वैसा राजकुमार कहीं पर भी मिला नहीं। मंत्रीमंडल के साथ परामर्श करके अब राजा मदनसुन्दर ने राजकुमारी के लिये स्वयंवर का आयोजन किया है। स्वयंवर का मुहूर्त आज से ठीक एक महीने के बाद है। राजा ने दूर के और निकट के सभी राजाओं को स्वयंवर में उपस्थित होने के लिये निमंत्रण भेजे हैं।' सुधन से मदनमंजरी का वृत्तांत जानकर मेघनाद बड़ा खुश हुआ। उसने सुधन को अपनी कीमती अंगूठी भेंट की। राजकुमार मित्रों के साथ राजमहल में गया। मित्र अपने-अपने घर पर चले गये। राजकुमार भोजन करके अपने शयनखंड में गया। उसके दिल-दिमाग पर राजकुमारी मदनमंजरी के विचार छाये हुए हैं। वह सोचता है : 'राजकुमारी ने सचमुच बड़ी कठोर प्रतिज्ञा कर ली है। पति की पसंदगी करने में उसकी कुशलता गजब की है। उसका स्वयंवर सचमुच देखने जैसा होगा! मुझे भी For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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