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पराक्रमी अजानंद
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इतना कहकर देवी जैसी आई थी... वैसी ही पलक झपकते अदृश्य हो गई। राजा तो अजानंद की तरफ देखता है... कभी आकाश में ताकता है... वह सोचने लगा..’कौन होगी यह औरत ? फिजूल का बड़बड़ा रही थी... यह भेड़ बकरी चरानेवाला मेरे जैसे शेर को मारेगा? अरे, कभी कोई लंगड़ा आदमी मेरु पर्वत के शिखर पर चढ़ सकता है क्या? यह लड़का मुझे क्या मारेगा ? कभी कोई हाथकटा आदमी समुद्र को तैर जाए तो भी यह गँवार मुझे मारना तो क्या छूने की हिम्मत भी नहीं कर सकता!'
राजा अपने मंत्री के सामने देखकर हँसने लगा... देवी की भविष्यवाणी का मजाक उड़ाने लगा ।
मंत्री ने कहा :
'महाराजा, दुश्मन चाहे छोटा क्यों न हो ... उसकी उपेक्षा करनी उचित नहीं है। नीतिशास्त्र ने कहा है कि व्याधि और विरोधी - दोनों समान होते हैं। उनकी उपेक्षा करने से, उनके प्रति लापरवाह बनने से वे शक्तिशाली हो जाते हैं। फिर उनको खत्म करना काफि मुश्किल होता है। और फिर, आपको कोई देवी... ... जो आप पर प्रेम रखती होगी... खुद आकर कह गई है कि 'यह अजानंद बारह साल के बाद आपको मार कर राजा बनेगा ।' तो यह बात माननी चाहिए। देववाणी झूठी नहीं होती है। ठीक है, अभी यह बच्चा है ..... आपको कुछ नहीं कर सकता... फिर भी...मेरा दिल यह कहता है कि इसको राज्य से बाहर तो निकाल फेंकना ही चाहिए। मैं तो मेरे मन की बात कह रहा हूँ, आगे आपको जो उचित लगे वह आप कर सकते हैं। '
राजा को मंत्री की सलाह में सच्चाई नजर आई। उसने तुरंत ही अपने दो घुड़सवार सैनिकों को आज्ञा कर दी : 'इस गँवार लड़के को दूर जाकर फेंक दो...'
अजानंद ने राजा की बात सुनी तो वह घबरा उठा। पर वह वहाँ से भाग कर जा नहीं सकता था । राजा के सैनिकों ने उसे घेर लिया था। दो सैनिकों ने उसको पकड़कर घोड़े पर डाला और घोड़े को जंगल की तरफ दौड़ा दिया। दोनों घुड़सवार दूर जंगल में पहुँच गये और वहाँ जाकर अजापुत्र को उठाकर फेंक दिया। सैनिक वापस लौट गये ।
अजापुत्र उठकर एक पेड़ की छाया में जाकर बैठा । उसका शरीर दुःख रहा था। फेंके जाने से उसे चोट भी आई थी। वह अपने मन में सोचने लगाः 'देवी की भविष्यवाणी सुनकर और मंत्री की सलाह मानकर राजा ने मुझे
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