________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पत्र ११
इत्यादिक बहु भंग त्रिभंगा, चमत्कार चित्त देती रे....
८६
अपेक्षावाद से यदि हम विश्व के पदार्थों को, गुणों को, बातों को देखना सीखें तो आश्चर्य से हम चकित हो जायेंगे | अपार चित्र-विचित्रतायें देखने को मिलेंगी। और यह सापेक्ष - दृष्टि ही आनन्दघन - स्वरुप मोक्षदशा प्रदान करती है।
योगीश्वरजी ने तो मात्र परमात्मा में सापेक्ष दृष्टि से गुणों का दर्शन करवाकर चमत्कृति का आनन्द दिया है, परन्तु हमें तो सभी बातों में सापेक्ष दृष्टि से देखना है, सापेक्ष दृष्टि से चिन्तन करना है । यदि सापेक्ष दृष्टि से दर्शन-चिन्तन होगा तो राग-द्वेष की तीव्रता दूर होगी । समताभाव पुष्ट होगा ।
For Private And Personal Use Only
चेतन, सापेक्ष दृष्टि से दर्शन - चिन्तन करने का अभ्यास करना होगा । करते रहना अभ्यास...और राग-द्वेष को मंद करते रहना...
यही मंगल कामना ।
प्रियदर्शन