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पत्र १०
इम पूजा बहु भेद सुणीने सुखदायक शुभ करणी रे भविक जीव करशे ते लेशे आनन्दघनपद धरणी रे...
स्तवनकार ने पूजा के अनेक भेद बताये और उसका फल भी बताया । परमात्मा की पूजा शुभ क्रिया है। शुभ क्रिया से पुण्यकर्म का ही बंध होता है। पापकर्मों का नाश होता है ।
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'द्रव्यपूजा करने में हिंसा का दोष लगता है'- ऐसा मान कर जो गृहस्थ द्रव्यपूजा और भावपूजा से वंचित रहते हैं, वे गृहस्थ अपूर्व पुण्यकर्म के लाभ से वंचित रहते हैं । परमात्मप्रीति... परमात्मभक्ति जैसी पवित्र क्रिया उनके जीवन में नहीं होने से, चित्तप्रसन्नता प्राप्त करने का श्रेष्ठ उपाय वे नहीं कर पाते ।
परमात्मा के चारों निक्षेप पूजनीय हैं। नाम, स्थापना [मूर्ति], द्रव्य और भाव, ये चार निक्षेप हैं। परमात्मप्रेमी मनुष्य परमात्मा के सभी स्वरूपों से प्रेम करेगा। परमात्मा संबंधी हर वस्तु से प्रेम करेगा ।
ऐसा परमात्मप्रेमी मनुष्य, एक दिन अवश्य आनन्दघनों की पृथ्वी पर पहुँच जायेगा! आनंदघनों की पृथ्वी है, सिद्धशिला । जहाँ सभी सिद्ध भगवंत आनंद के घन होते हैं । परमानन्दी होते हैं।
चेतन, योगीश्वर श्री आनन्दघनजी ने परमात्मा की पूजा का कितना स्पष्ट प्रतिपादन किया है! फिर भी कुछ कदाग्रही लोग परमात्मा के मंदिर से दूर भागते रहते हैं! रागी -द्वेषी देवों के मंदिर में जाते हैं... पीर - फकीरों की मजारों पर जाते हैं... वीतराग तीर्थंकर के मंदिरों में नहीं जाते !
जब ऐसे लोगों के हृदय में भी परमात्म- प्रेम की शहनाई बजने लगेगी... वे गलत परंपराओं को तोड़कर परमात्मा का दर्शन-पूजन करने जिनमंदिरों में दौड़ते हुए आयेंगे।
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तू प्रतिदिन परमात्मा की पूजा करता ही है, अब उस शुभ क्रिया में विशेष रूप से मन को जोड़ना और प्रतिक्षण प्रसन्नता की अनुभूति करता रहे-यही मंगलकामना ।
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प्रियदर्शन