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पत्र १०
१. पुष्पपूजा, २. अक्षतपूजा, ३. वास-पूजा, ४. धूप पूजा और ५. दीपक पूजा। पाँच प्रकार की यह अंगपूजा है।
वर्तमान समय में इस प्रकार अंगपूजा नहीं होती है। अभी तो तीन प्रकार की अंगपूजा और पाँच प्रकार की अग्रपूजा ही होती है :
१. जलपूजा, २. केसरमिश्रित चंदनपूजा और ३. पुष्पपूजा। यह है, अंगपूजा कि जो जिनप्रतिमा के अंगों पर की जाती है।
१. धूपपूजा, २. दीपकपूजा, ३. अक्षतपूजा, ४. नैवेद्यपूजा और ५. फलपूजायह है, अग्रपूजा, यानी परमात्मा के आगे [अग्र] की जाती है।
श्री आनन्दघनजी ने अग्रपूजा में १. जलकलश, २. नैवेद्य और ३. फल-ये तीन प्रकार बताये हैं। और इस प्रकार अष्टप्रकारी पूजा का निर्देश किया है। अंग-अग्रपूजा मली अडविध भावे भविक शुभगति वरी रे... ___ अडविध यानी आठ प्रकार की पूजा जो भविक जीव भावपूर्वक करता है, वह शुभ गति प्राप्त करता है। अर्थात् देवगति प्राप्त करता है। ___ जैसे अष्टप्रकारी पूजा बतायी है, वैसे १७ प्रकार की, २१ प्रकार की एवं १०८ प्रकार की पूजायें भी होती हैं। ये सारी पूजायें द्रव्यपूजायें हैं, यानी उत्तम द्रव्यों से परमात्मा का पूजन किया जाता है। भावपूजा में किसी द्रव्य की आवश्यकता नहीं रहती है। भावपूजा भी अनेक प्रकार की बतायी गयी है, धर्मशास्त्रों में। भावपूजा बहुविध निरधारी दोहग-दुर्गति छेदे रे...
दोहग का अर्थ है दुर्भाग्य | भावपूजा करनेवाली जीवात्मा का दुर्भाग्य मिट जाता है, दुर्गति मिट जाती है। भावपूजा के निश्चित सूत्र हैं, उन सूत्रों के माध्यम से परमात्मा की पूजा की जाती है। मधुर स्वर से अर्थगंभीर स्तवनागान करना चाहिए। गीत-नृत्य भी भावपूजा के ही प्रकार हैं।
द्रव्यपूजा और भावपूजा का फल बताते हुए कहते हैंएहनुं फल दोय भेद सुणीजे अनंतर ने परंपर रे...
फल दो प्रकार का प्राप्त होता है। एक प्रकार है, अनन्तर फल का, दूसरा प्रकार है, परंपर फल का | अनन्तर फल यानी इसी जीवन में जो प्राप्त हो, परंपर फल यानी आनेवाले भविष्य में जो प्राप्त हो।
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