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पत्र २
प्रेम पाने के लिए हृदय शिशु जैसा निर्दोष होना चाहिए। हृदय में सहजता होनी चाहिए, कृत्रिमता नहीं। हृदय में संवादिता होनी चाहिए, विसंवाद नहीं। निष्कपट हृदय से किया हुआ समर्पण, तुझे परमानन्दपद का स्पर्श करवायेगा। __ भगवान ऋषभदेव को 'प्रियतम' बनाकर आनन्दघनजी उनकी प्रेयसी बन गये हैं! प्रेयसी बनकर उन्होंने ऋषभदेव से उत्कृष्ट प्रेम-निवेदन किया है।
चेतन, आनन्दघनजी की इस प्रथम स्तवना में तूने क्या अनुभव किया... तू लिखना। हो सके तो एक-एक स्तवना को कंठस्थ कर लेना। परमात्मा में तेरा मन लीन बनता रहे... यही मंगल कामना!
- प्रियदर्शन
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