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पत्र २२
१९५ ६. आज्ञा-कमल :
दोनों भौंहों के मध्य में आज्ञा-कमल की धारणा करने की है। यह श्वेत रंग का कमल है। यह द्विदल-कमल है। दो दलों के ऊपर क्रमशः ह और क्ष - अक्षरों की स्थापना करने की है।
इस कमल का ध्यान करने से मनुष्य को किसी प्रकार का अवसाद नहीं रहता है। महानन्द की प्राप्ति होती है।
इन कमलों में मंत्रबीजों की स्थापना कर जाप किया जाता है। जैसे, मूलाधार में वाग्बीज 'ऐं' का जाप, अनाहत में कामबीज क्लीं का जाप, आज्ञा में शक्तिबीज ह्रीं का जाप किया जाता है।
चेतन, इन कमलों की अधिष्ठात्री देवियाँ होती हैं - ० मूलाधार की डाकिनी ० स्वाधिष्ठान की राकिनी ० मणिपूरक की लाकिनी ० अनाहत की काकिनी ० विशुद्ध की शाकिनी ० आज्ञा की हाकिनी.
चेतन, यह प्रक्रिया प्राचीन योगग्रन्थों के आधार पर लिखी है। हालाँकि मैंने इस प्रकार ध्यान का प्रयोग नहीं किया है। चूंकि प्रयोग के लिये सिद्धयोगी गुरु का मार्गदर्शन चाहिए। आज वैसा योग मिलता कहाँ है? यदि यह ध्यान किया जाय तो - जे ध्यावे ते नवि वंचीजे क्रिया अवंचक योगे रे...
साधक कषायों को, संज्ञाओं को और गारवों को परवश नहीं पड़ता है। कषाय उसको ठग नहीं सकते [नवी वंचीजे] संज्ञायें और गारव भी नहीं ठग सकते। सदगुरु का संयोग मिलने पर वह 'क्रियावंचक' योग में [इस ध्यान प्रक्रिया में] प्रवृत्त होता है। __सद्गुरु का संयोग मिले बिना, क्रियावंचक योग नहीं मिलता हैं । प्रस्तुत में षटदलकमल की ध्यानप्रक्रियारूप क्रियावंचक योग की साधना, सदगुरु के बिना, नहीं हो सकती है।
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