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पत्र २२
१९३ प्राचीन योगग्रन्थों के आधार पर कुछ विस्तार से ध्यानप्रक्रिया बताऊँगा।
सर्वप्रथम, यह ध्यान करनेवाला साधक मनुष्य कैसा होना चाहिए यह बताता हूँ
१. स्थिर बुद्धिवाला, २. लययोग की साधना में तत्पर, ३. स्वाधीन, ४. वीर्यवान्, ५. विशाल हृदयवाला, ६. दयायुक्त, ७. क्षमाशील, ८. सत्यवादी, ९. वीर, १०. श्रद्धावान्, ११. गुरुचरणपूजक, १२. योगाभ्यास में तत्पर | ऐसा साधक ही उपर्युक्त ध्यान करने के लिए पात्र होता है। छह वर्ष तक निरंतर ध्यान करने से सिद्धि प्राप्त होती है। __ मुद्रा : योगसिद्ध गुरु से साधक को १० प्रकार की मुद्रायें सीखनी चाहिए | ये मुद्रायें निम्न प्रकार हैं
१. महामुद्रा, २. महावेध, ३. महाबंध, ४. मूलबंध, ५. जालंधरबंध, ६. उड्डीयानबंध, ७. खेचरी, ८. वज्रोली, ९. विपरीत करणी, १०. शक्तिचालिनी. धारणा : अक्षर : अक्षरन्यास :
साधक को अपने शरीर में छह स्थानों पर छह प्रकार के कमलों की [चक्रों की] धारणा करने की होती हैं। उन छह कमलों के नाम निम्न प्रकार हैं
१. मूलाधार, २. स्वाधिष्ठान, ३. मणिपूरक, ४. अनाहत, ५. विशुद्ध, ६. आज्ञा। इस ध्यान-प्रक्रिया में इन छह कमलों की धारणा ही प्रमुख है।
इन छह कमलों में साधक को पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश-इन पंच भूतों की धारणा करने की होती है। यानी एक-एक कमल में पाँच-पाँच घड़ी [२४ मिनट की एक घड़ी] तक वायु धारण करने का होता है। यानी कुंभक कर, पाँच भूतों की धारणा करने की होती है। इस धारणा के लिये 'प्राणायाम' सिद्ध होना चाहिए | यह पंचभूत की धारणा करने से साधक व्यंतरादि के भयों से निर्भयता प्राप्त करता है।
चेतन, अब शरीर में कहाँ-कहाँ पर कौन-कौन से कमल की धारणा [कल्पना] करने की है, यह बताता हूँ| कमलों का स्वरूप भी बताता हूं। १. मूलाधार-कमल :
गुदा से दो अंगुल ऊपर और लिंग से एक अंगुल नीचे, चार अंगुल प्रमाण का एक कन्द है, वही मूलाधार कमल है। प्रकाशमान कमल के चार दल हैं, यानी यह चतुर्दल कमल है।
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