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पत्र २२ जो भिन्न-भिन्न मान्यतायें चली, उन मान्यताओं के ये छह विभाग हैं।
दूसरा प्रकार : १. सांख्य, २. योग, ३. मीमांसा, ४. बौद्ध, ५. चार्वाक और ६. जैन | श्री आनंदघनजी ने जिस षडदर्शन की बात इस स्तवना में की है, वह दूसरा प्रकार है। वेदजन्य छह दर्शनों का समावेश उन्होंने सांख्य, योग और मीमांसा में कर दिया और चार्वाक, बौद्ध एवं जैनदर्शन का समावेश किया। जैसे आस्तिक दर्शनों का परस्पर का कलह शान्त करना था, वैसे आस्तिकनास्तिक का भी झगडा मिटाना था। चार्वाकदर्शन नास्तिक दर्शन है। छह दर्शनों में इसलिए नास्तिक दर्शन [चार्वाक का भी समावेश किया है।
शास्त्रसम्मत शैली में, अनेकान्तदृष्टि से योगीराज ने छह दर्शनों का सामंजस्य-संवादिता स्थापित की है। मोक्षमार्ग के साधक पुरुष के लिये यह संवादिता.... महान् तत्त्व है। ___ श्री जिनेश्वर देव के शरीर के साथ षड्दर्शनों को जोड़कर, सभी दर्शनों की उपयोगिता बतायी है। षड् दरिसण जिन-अंग भणीजे, न्यास षडंग जो साधे रे नमिजिनवरना चरण-उपासक षड्दर्शन आराधे रे....
'छह दर्शनों को जिनेश्वर के अंग कह सकते हैं। नमिनाथ जिनेन्द्र के चरणोपासक कि जो, जिनेश्वर के छह अंगों में छह दर्शनों का न्यास [स्थापना] कर सकते हैं, वे छह दर्शनों की आराधना कर सकते हैं।' ___ जिनेश्वर पूर्ण पुरुष हैं। उनका धर्मोपदेश पूर्ण होता है। उनका विश्वदर्शन भी पूर्ण होता है। यहाँ इस स्तवना में वैदिकदर्शन और बौद्धदर्शन को तो पूर्णपुरुष में समाविष्ट किये हैं, चार्वाक जैसे नास्तिक दर्शन का भी योगीराज ने पूर्णपुरुष में समावेश किया है! मात्र मनः कल्पना से नहीं, जैनशासन की शास्त्रदृष्टि से समावेश किया है। जिन-सुरपादप-पाय वखाणुं सांख्य जोग दोय भेदे रे....
जिनेश्वर भगवंत कल्पवृक्ष [सुरपादप] समान हैं। उसके दो पैर हैं-सांख्यदर्शन और योगदर्शन। आतम-सत्ता विवरण करतां लहो दुग अंग अखेदे रे....
वे दो पैर [अंग], जिनेश्वर को खड़े रहने के मजबूत अंग हैं, यह बात किसी
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