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पत्र २२ । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ० शास्त्रसम्मत शैली में, अनेकान्तदृष्टि से योगीराज ने छह दर्शनों का
सामंजस्य-संवादिता स्थापित की है। ० यहाँ इस स्तवना में वैदिकदर्शन और बौद्धदर्शन को तो पूर्णपुरुष में
समाविष्ट किये ही हैं, चार्वाक जैसे नास्तिक दर्शन को भी योगीराज ने
पूर्णपुरुष में समावेश किया है। ० दो पैरों में सांख्य और योग का, दो हाथों में बौद्ध और मीमांसक का,
पेट पर चार्वाक का और मस्तक पर जैनदर्शन का न्यास [स्थापन
करना चाहिए। ० श्री जिनेश्वरदेव में सभी दर्शनों का समावेश हो सकता है, चूंकि वे
सागर के समान विशाल हैं।
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पत्र : २२
श्री नमिनाथ स्तवना
प्रिय चेतन, धर्मलाभ! तेरा पत्र मिला, आनन्द! ० आत्मा 'नित्य' है, या 'अनित्य'? ० आत्मा 'एक' है, या 'अनेक'? ० आत्मा 'विश्वव्यापी' है, या 'शरीरव्यापी'? ० आत्मा जड़ है, या चेतन? ० आत्मा है, या नहीं?
इन बातों को लेकर, जैन और वैदिकों के बीच, जैन और बौद्धों के बीच, जैन और चार्वाकों के बीच, वैदिक और बौद्धों के बीच, वैदिक और चार्वाकों के बीच.... अनेक शताब्दियों तक वाद-विवाद होते रहे! 'आत्मा' को वाद-विवादों में उलझा दी गई।
ऐसी उलझी हुई आत्मा को, वाद-विवादों से मुक्त करने के लिये ही इस स्तवना की रचना की गई हो-ऐसा लगता है। कोई भी दर्शन झूठा नहीं है-यह बात समझाने का संनिष्ठ प्रयास किया गया है।
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