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काशीदेश में अहिंसा-प्रचार
हजारों नगरजनों की उपस्थिति में और गुर्जरपति के चार सचिवों की हाजिरी में उस ढेर को जला दिया गया। काशी देश में से हिंसा नेस्त-नाबूद कर दी गई।
राजा जयन्तचन्द्र ने चारों सचिवों को बुलाकर गूर्जरपति के लिए चार करोड़ सुवर्णमुद्राएँ और चार हजार घोड़ों का काफिला भेंट किया। उन्हें बड़े प्यार और सम्मान के साथ बिदाई दी।
चारों सचिव गुर्जरपति के द्वारा निर्दिष्ट कार्य को सुन्दर ढंग से परिपूर्ण कर के पाटन लौट आये।
राजसभा भरी हुई थी।
राजा कुमारपाल राजसिंहासन पर बैठे हुए थे। समीप में ही काष्ठासन पर गुरुदेव हेमचन्द्रसूरिजी बिराजमान थे। चारों सचिवों ने राजसभा में प्रवेश किया। सर्वप्रथम गुरुदेव को प्रणाम किये और फिर राजा को प्रणाम करके, वाराणसी नगरी का सारा वृत्तान्त निवेदित किया । चार करोड़ सोनामुहरें और चार हजार घोड़ो के उपहार की बात कही।
गुरुदेव श्रीहेमचन्द्रसूरिजी जीवदया के इस अद्भुत कार्य से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने महाराजा से कहा : __'कुमारपाल, भारत में धर्मिष्ठ राजा तो बहुत हुए हैं - परन्तु तेरे जैसा कोई नहीं। भविष्य में भी धर्मिष्ठ राजा तो होंगे पर तेरे जैसे नहीं! तूने कहीं पर भक्ति से तो कहीं पर शक्ति से... तो कहीं पर ढेर सारी संपत्ति से तेरे देश में
और परदेश में अहिंसा का प्रसार किया है।' ___ काशीराज जयंतचन्द्र राजा के साथ गुर्जरेश्वर कुमारपाल की मैत्री गाढ़ हुई।
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