SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वभूमिका कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी का जीवन चरित्र लिखना यानी महासागर को तैरने जैसा कठिन कार्य है। किन्तु आचार्यदेव के प्रति मेरे मनकी अपार श्रद्धा एवं अमाप भक्ति ने ही मुझे यह चरित्र लिखने के लिए प्रेरित किया है - प्रोत्साहित किया है। इस चरित्र रचना के आधारभूत ग्रंथ है : (१) श्री जयसिंहसूरि विरचित 'कुमारपाल भूपाल चरित्र' (२) श्री राजशेखरसूरि प्रणित 'चतुर्विंशति प्रबन्ध' और (३) श्री मेरुतुंगाचार्य रचित 'प्रबन्ध चिन्तामणि' गुजरात या भारत के इतिहास में इन सच्ची-बिलकुल सत्य घटनाओं को समाविष्ट नहीं की गई हैं। इसके पीछे जैन समाज व संस्कृति के प्रति इतिहास लिखनेवालोंकी पूर्वग्रहबद्ध मानसिकता ही कारणभूत है। अधिकतर इतिहास विदेशी विद्वानों के द्वारा लिखा गया है, और हमारे तथाकथित शिक्षाशास्त्री लकीर के फकीर बनकर विदेशी नजरिये से लिखे गये आधा सच - आधा झूठ इतिहास को विद्यालयों में पढ़ाते है। इससे बच्चों को पुरातन मूल्यों को उजागर करनेवाली संस्कारप्रेरक बातें पढ़ने को मिलती नहीं है। इस धरती के उपवन को संस्कार वृक्षों से हराभरा बनाने में जैन व्यक्तित्वों का कितना महत्वपूर्ण योगदान है, यह न तो जैन लोग जानते है, न ही अन्य धर्मावलम्बी! श्री हेमचन्द्राचार्य का व्यक्तित्व अदभुत था। उनका समग्र जीवन तेजोमय था। आचार्यदेव में आध्यात्मिक धवलिमा के साथ साथ अपूर्व मानवता की महक थी। आचार्यदेव के सौम्य-समयानुलक्षी उपदेश के आगे एवं आचार्यदेव के निर्मल-शुभ व्यक्तित्व के समक्ष गूर्जरेश्वर सिद्धराज की उत्कट महत्वाकांक्षाएं और उसकी स्वभावगत उग्रता शांत हो जाया करती थी। ___ श्री हेमचन्द्राचार्यजी की अपूर्व उपदेश शक्ति से राजा कुमारपाल के मन का समाधान हुआ था। उनकी वीतराग-स्तवना से राजा का चित्त सात्विक बन गया था। योगशास्त्र के अध्ययन ने राजा ने उत्तरावस्था में मनः प्रसाद प्राप्त किया था। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy