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कृपालु गुरुदेव
४५ 'तेरे भाग्य में जो है ही नहीं, वह मैं कैसे दे सकता हूँ? तेरे गत जन्म के पाप बीच में रुकावट डाले हुए खड़े हैं! राजा, पुत्र प्राप्ति के लिए तेरी योग्यता ही नहीं है, फिर मैं कर भी क्या सकता हूँ? कर्मों को झुठलाने की ताकत दुनिया में किसी के पास नहीं है!'
इतना कहकर सोमनाथ महादेव अदृश्य हो गये।
राजा-रानी मंदिर से बाहर आये। धर्मशाला में जाकर उन्होंने पारणा किया।
राजा को अत्यन्त मायूस हुआ देखकर रानी ने उसे ढाढ़स बंधाते हुए कहा :
'नाथ, क्यों इतना अफसोस कर रहे हो? देवों की बात मिथ्या नहीं होती! उनका कथन स्वीकार करें और अब पुत्र प्राप्ति की चाहना ही मन में से निकाल दें!
सिद्धराज ने कहा :
'देवी, तुम्हारी बात सही है, पर क्या करूँ? मन मानता नहीं है! 'पुत्र-प्राप्ति नहीं होगी, यह बात मान भी लूँ... पर मेरे गुजरात का राज्य कुमारपाल के हाथों में जाएगा...। इस बात को मैं सह नहीं सकता! यह बात मेरे कलेजे को टुकड़े-टुकड़े कर रही हैं...। मैं किसी भी हालत में उसे राजा नहीं होने दूंगा! वह जिन्दा रहेगा तो राजा बनेगा ना? मैं उसकी हत्या करवा दूंगा...। उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा...। फिर वह राजा बनेगा कैसे?' सिद्धराज की आवाज में गुस्सा और तिरस्कार की फॅफकार थी। __रानी ने राजा का हाथ अपने हाथ में लिया और अत्यंत मुलायम शब्दों में कहा :
'शान्त हो जाइये... स्वामिन्! जो होनी है उसे कौन टाल सकता है? हमें अब बाकी बची जिन्दगी शांति से जीनी चाहिए!'
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