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कोयला बने सोनामुहर
वे थीं तो सोनामुहरें ही पर मेरे कातिल दुर्भाग्य से वे सब कोयले का ढेर बनकर रह गई थीं... मैंने वह कोयले का ढेर घर के एक कोने में डाल रखा था!' ___ 'सेठ तुम्हारे उस ढेर पर हमारे छोटे मुनिराज की दृष्टि पड़ी और कोयले फिर से सोनामुहरें हो गईं!'
धनद सेठ ने सोमचंद्र मुनि के चरणों में भावविभोर होकर प्रणाम करते हुए कहा :
'भगवान, आपके उत्कृष्ट पुण्य के प्रभाव से कोयला बना हुआ मेरा सोना वापस सोना हो गया । आपने मुझे निर्धनता की खाई में से बाहर निकाला। अब आप मुझ पर एक कृपा और कीजिए...उन सोनामुहरों के ढेर पर आप हाथ रखकर यहाँ से पधारें... ताकि आपके जाने के बाद वापस ये सोनामुहरें कोयले में परिवर्तित न हो जाएँ!'
धनद सेठ की विनति से सोमचन्द्र मुनि ने सोनामुहरों के ढेर पर हाथ रखा । धनद सेठ ने तत्काल उन सोनामुहरों को उठाकर तिजोरी में रख दी!
धनद सेठ बार-बार सोमचन्द्र मुनि का उपकार मानने लगा। मुनिवरों ने भिक्षा ग्रहण की और उपाश्रय की ओर चल दिये।
धनद सेठ भी मुनिवरों के पीछे-पीछे उपाश्रय की ओर चले । धनद सेठ के मन में एक शुभ विचार अंकुरित होकर पनपने लगा था। उस शुभ विचार को साकार बनाने के लिए ही वे गुरुदेव के पास उपाश्रय में जा रहे थे।
उपाश्रय में पहुँच कर धनद सेठ ने आचार्यदेव के चरणों में वंदना की। उन्होंने गद्गद् स्वर में कहा :
'आचार्य भगवंत! आपके लाड़ले शिष्य सोमचन्द्र मुनि के पुण्य प्रभाव से कोयला हो चुकी मेरी सोनामुहरें पुनः सुवर्ण हो गयी... आपके शिष्य की अमृतमयी दृष्टि का यह प्रभाव है! इसलिए वह सारा सोना आपका है... आप कृपा कीजिए मुझ पर और आज्ञा दीजिए कि उस सुवर्ण का मैं कहाँ पर उपयोग करूँ?'
धनद सेठ की कितनी महानता! धनद सेठ की कितनी नीतिमत्ता! जिनके प्रभाव से धन मिला... उनके श्रीचरणों में अर्पित कर दिया! न तो
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