________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कोयला बने सोनामुहर हो जाता है... गर्व चूर-चूर हो जाता है... महानता दूर चली जाती है... और उसके सभी मनोरथों के महल टूट-टूट कर ढेर हो जाते हैं!
दुर्भाग्य राजा को रंक बना देता है...
बद-किस्मती अमीर को गरीब बना देती है... और मेरु को तिनके के बराबर बना कर रख देती है।'
धीरे-धीरे सेठ और सेठ का परिवार शान्त होता है... घर की औरतों के गहने बेच-बेच कर अपने विशाल परिवार का भार निभाते हैं।
पर इतना धन भी आखिर कब तक चलने का? सेठ ने अपनी दुकानें बेच दी... रहने की हवेली के अलावा सभी घर बेच डाले... फिर भी दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ता था! सेठ के हालात ऐसे हो गये कि घर के बरतन भी बेच डालने पड़े!
और एक दिन ऐसा आया कि सेठ के परिवार को दो समय का खाना भी नसीब नहीं होता है... अत्यन्त निर्धनता ने सेठ का घर दबोच लिया।
उसी अरसे में आचार्यदेव श्री देवचंद्रसूरिजी नागपुर में पधारे थे।
एक दिन सोमचंद्र मुनि गोचरी के लिए निकले थे। उनके साथ वीरचन्द्र नाम के मुनिराज भी थे।
दोनों मुनिराज ने धनद सेठ की हवेली में गोचरी के लिए प्रवेश किया। हवेली की देहरी के बाहर ही सेठ और उनका दीन-हीन, श्री विहीन परिवार बैठा हुआ था। आटे और पानी में नमक डालकर बनाई हुई राब पी रहा था।
वीरचन्द्र मुनि के पीछे सोमचंद्र मुनि खड़े थे। उन्होंने सेठ की हवेली के भीतर चौतरफ निगाह फेंकी। सेठ जो राब पी रहे थे वह भी देखा। सोमचंद्र मुनि को आश्चर्य हुआ। उन्होंने मंद स्वर में वीरचन्द्रमुनि से कहा : ___ 'पूज्यवर, यह सेठ इतने धनवान होने पर भी निर्धन मनुष्य की भाँति राब क्यों पी रहे हैं? यह तो किसी राजा की तरह बत्तीस साग और तेतीस पकवान खा सके वैसी श्रीमंताई का मालिक है!'
वीरचन्द्र मुनिवर ने कहा : 'छोटे महाराज... तुम्हारे तो बड़े-बड़े श्रीमंत लोग भक्त हैं... तुम रोजाना उनके घर से मिठाई लाते हो... फिर तुम्हें गरीब आदमी के हालात का पता क्या लगेगा? कभी यदि निर्धन श्रावक के घर पर जाकर गोचरी लाओगे तो
For Private And Personal Use Only