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गत जनम की बात
१५५ संतानप्राप्ति नहीं हुई। धनदत्त को तुम्हारे प्रति वैर का अनुबन्ध था, बदले की भावना थी, इसलिए इस जन्म में भी तुम्हारे प्रति वह दुश्मनी रखता रहा।
-- गत जन्म में मेरा और आढ़र सेठ का तुम्हारे प्रति काफी वात्सल्य भाव था, इसलिए इस जन्म में भी हमारा हृदय तुम्हारे प्रति वात्सल्य से भरा है। ___- तुमने पूर्वजन्म में पाँच कौड़ी के अठारह फूलों से परमात्मा की भावभक्ति पूर्वक पूजा की थी, इसलिए इस जन्म में तुम्हें अठारह इलाकों का राज्य प्राप्त हुआ। ___ - पूर्वजन्म में तुमने काफी लूट-खसोट की थी इसलिए इस जन्म में तुम्हें सिद्धराज के भय से दर-दर भटकना पड़ा और कष्टों को सहना पड़ा।
यह तुम्हारा पूर्व जन्म, जैसा मुझे त्रिभुवनस्वामिनी देवी ने मुझ से कहा, वैसा मैंने तुम्हें बताया है।
यदि मेरे कथन में तुम्हें जरा भी संदेह या कौतूहल हो तो किसी भी राजपुरुष को एकशिला नगरी में भेजकर तलाश करवा लो। आढ़र सेठ के लड़कों के घर में 'स्थिरा' नाम की एक वयोवृद्धा नौकरानी अभी भी जिन्दा है, उसे इस बारे में पूछने पर वह सब कुछ बता सकेगी।'
कुमारपाल ने कहा : 'गुरुदेव, आप तो स्वयं सर्वज्ञ जैसे सूरिदेव हो। इस कलियुग में सर्वज्ञ की भाँति भूतकाल और भविष्यकाल की बातें कहनेवाला आपके अलावा दूसरा है कौन? देवी की वाणी कभी झूठी हो नहीं सकती, फिर भी केवल उत्सुकता से... कौतूहल से मेरे गुप्तचरों को ‘एकशिला' नगरी में भेजकर उस वृद्धा दासी की तलाश करवाऊँ तो?' 'बड़ी खुशी के साथ।' गुरुदेव ने कहा।
गुप्तचर पहुँचे एकशिला नगरी में। आढ़र सेठ के लड़कों से मिले । स्थिरा दासी से मिले। उसे सारी बातें पूछी। आढ़र सेठ के द्वारा निर्मित जिनमंदिर को देखा।
गुप्तचरों ने लौटकर राजा कुमारपाल से निवेदन किया : 'गुरुदेव ने जैसा कहा है... वैसा ही हमने वहाँ पर सब देखा और वैसी ही जानकारी मिली।'
राजा कुमारपाल ने भरी राजसभा के बीच गुरुदेव को 'कलिकाल सर्वज्ञ' की पदवी से विभूषित किया ।
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