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चंगदेव
चाचग सोच में डूब गये। उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। 'क्या सोच रहे हो, चाचग?' 'गुरुदेव, मैं सोचकर जवाब दूंगा।' 'ठीक है, सोचकर जवाब देना | पर पुत्र की ममता को सामने रखकर मत सोचना...| पुत्र के हित को लेकर सोचना। तुम्हारा यह अकेला पुत्र लाखों जीवों का तारनहार होगा... लाखों जीवों को अभयदान देनेवाला होगा।'
चाचग सेठ घर पर आये। चंगदेव को साथ बिठाकर चाचग ने भोजन किया । भोजन करके चाचग ने चंगदेव से पूछा : 'बेटा, तुझे गुरुदेव अच्छे लगते हैं...?' 'हाँ... बहुत अच्छे लगते हैं!' 'तू उनके पास रहेगा?' 'रहूँगा।' 'पर तुझे वहाँ तेरी माँ नहीं मिलेगी!' 'फिर भी मैं गुरुदेव के पास रहूँगा।' 'गुरुदेव के पास रहकर क्या करेगा?' 'गुरुदेव जो कहेंगे वह करूँगा।' 'गुरुदेव पढ़ाई करने को कहेंगे।' 'तो मैं पढ़ाई करूँगा!' 'गुरुदेव के साथ नंगे पाँव चलना होगा।' 'चलूँगा मैं।'
चाचग सेठ सोचते हैं : 'इस बच्चे पर हमें मोह है... इसे हम पर मोह नहीं है...।'
चाचग सेठ ने पाहिनी के साथ चर्चा की। पाहिनी ने भी अपनी सहमति दे दी। चाचग सेठ ने चंगदेव को गुरुदेव को सौंप दिया। गुरुदेव देवचन्द्रसूरिजी चंगदेव को लेकर खंभात की ओर विहार कर गये।
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