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बादशाह का अपहरण
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गुरुदेव ने अपना ध्यान पूर्ण किया । कुमारपाल ने गुरुदेव के चरण पकड़ लिये । गुरुदेव से पूछा :
'यह कौन व्यक्ति है, गुरुदेव ?'
गुरुदेव के चेहरे पर स्मित की बिजली कौंधी |
'कुमार, यह वही बादशाह मुहम्मद है। जिसने गुजरात के साम्राज्य को हड़पने के इरादे से चढ़ाई करने की जुर्रत की है। जिसके कारण तू चिन्ता में डूबा है। यह उसकी छावनी में सोया हुआ था, मैं पलंग के साथ ही... सोये हुए उसे यहाँ ले आया हूँ ।'
'पर यह कैसे संभव हो सका, भगवन् ?'
'योगशक्ति के सहारे । '
'अद्भुत... अद्भुत... कुमारपाल का दिल खुशी से किलकारी मार उठा । इतने में तो यवन बादशाह जाग उठा । वह आँखें मसलकर चारों ओर देखने लगा ।
'अरे... मेरी छावनी कहाँ चली गई? मेरी सेना कहाँ गई? मैं कहाँ हूँ? मैं कहाँ हूँ? बादशाह बोल उठा। उसने आचार्यदेव और कुमारपाल को देखा... उसने पूछा :
'तुम कौन हो ?'
आचार्यदेव ने कहा : ‘मुहम्मद ... तू पाटन में है... और यह तेरे सामने जो पुरुष खड़ा है... वह गुजरात का पराक्रमी राजा कुमारपाल है ।'
कुमारपाल का नाम सुनते ही मुहम्मद के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं । उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह पलंग पर से नीचे उतर आया... दोनों हाथ जोड़कर... पत्ते की भाँति काँपते हुए कुमारपाल के सामने दयार्द्र निगाहों से देखने लगा।
कुमारपाल मारे क्रोध के बौखला उठा।
'अरे दुष्ट! तू बदइरादे से गुजरात पर चढ़ाई लेकर आया था..... परन्तु मेरे इन समर्थ गुरुदेव ने तेरी मनहूस मुरादों पर बरफ का पानी डाल दिया है। वे ही अपनी योगविद्या के बल पर तुझे यहाँ उड़ा लाए हैं। अब तू कभी भी रात में तो क्या दिन में भी गुजरात की ओर नजर उठाने का सपना भी नहीं देखें वैसी सजा मैं तुझे दूँगा। तू अपने खुदा को याद कर ले... अब तेरी कयामत मैं बुला रहा हूँ।'
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