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बादशाह का अपहरण
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सेना से निपटना तो कुछ मुश्किल नहीं होगा। बड़ी आसानी से गुजरात पर फतह करने का मेरा सपना साकार हो जाएगा ।'
भारी सेना लेकर उसने आनन-फानन में गुजरात की ओर प्रयाण किया । अपने खुफिया दूतों के माध्यम से उसने नजदीक के रास्ते समझ लिए थे।
एक-दो महीने में तो मुहम्मद गुजरात की सीमा पर आ धमका। गुजरात की सीमा पर गुर्जरेश्वर की चौकियाँ थीं । चौकी के रक्षकों ने मुसलमान सेना को उफनते ज्वार की तरह आगे बढ़ते देखा । चारों ओर अफरातफरी का माहौल देखकर दो रक्षक घोड़े पर सवार होकर तीर की तरह भागकर पाटन पहुँचे। राजमहल में जाकर सैनिकों ने राजा कुमारपाल से निवेदन किया ।
'महाराजा, मुसलमान बादशाह मुहम्मद भारी सेना लेकर गुजरात की सीमा पर आ धमका है । उन हजारों सैनिको के सामने हम सौ दो सौ रक्षक सैनिक ज्यादा कुछ नहीं कर पायेंगे। उस बादशाह को आगे बढ़ने से रोकना हमारे बस की बात नहीं है । '
'अच्छा किया तुमने... जो मुझे समय रहते समाचार दे दिये। तुम निश्चिंत होकर कर्तव्य निभाना जारी रखो। मैं दूसरी व्यवस्था करता हूँ । चिन्ता मत करना । गुजरात की अस्मिता पर उठनेवाला हाथ या फिरनेवाली आँख सलामत नहीं रहेगी । '
कुमारपाल ने दोनों रक्षक सैनिकों को चिन्तामुक्त करके बिदा किया, पर स्वयं कुमारपाल चिन्ता के चक्रव्यूह में उलझ गये।
'पाटन छोड़कर चातुर्मास में बाहर नहीं जाने की मेरी प्रतिज्ञा है । मैं लड़ाई करने जा नहीं सकता। और मेरी अनुपस्थिति में सेना उस मदांध मुसलमान राजा को नाकाम कर सके वैसे आसार है नहीं । और यदि मुकाबला नहीं करता हूँ तो वह दुष्ट यवनराजा मेरी गूर्जर प्रजा को मार-मार कर लूट लेगा । यह तो संभव ही नहीं हो सकता । तब फिर क्या करना?'
राजा की उलझन बढ़ती चली।
उनकी स्मृतियों के आकाश में गुरुदेव का चन्द्र जैसा चेहरा उभरा। उसी वक्त वे गुरुदेव के पास पहुँचे । गुरुदेव को विधि सहित वंदना की।
'महानुभाव, तुम्हारे चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ उभरी हुई हैं... बात क्या है?' गुरुदेव ने पूछा।
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