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आकाशमार्ग से भरुच में एक दिव्य मधुर आवाज वातावरण में गूंज उठी :
नगर के निवासी लोगों। मैं देवी नर्मदा बोल रही हूँ। आम्रभट्ट और उनकी पत्नी का मनुष्य प्रेम और प्रभु भक्ति देखकर मैं प्रसन्न हो उठी हूँ। इसलिए उन्हें और उनके मजदूरों को नयी जिन्दगी प्रदान करती हूँ। वे सभी इस खड्डे में से जिन्दे... सही-सलामत बाहर आयेंगे।
और सचमुच... खड्डे में से आम्रभट्ट, उनकी पत्नी और मजदूर बाहर आने लगे। सभी भले-चंगे थे... वे सभी प्रसन्न थे... उनके चेहरे पर खुशी थी।
नागरिकों ने हर्ष की किलकारियाँ की। चारों ओर खुशी का शोर मच उठा। जैन धर्म का जयनाद हुआ और महोत्सव रचाए गये।
दण्डनायक आम्रभट्ट ने देवी नर्मदा के चरणों में उत्तम फल नैवेद्य अर्पण करके पूजा की।
मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से चला। सैंकड़ो कारीगर और हजारों मजदूर लोग रात-दिन एक करके कार्य करने लगे। दण्डनायक ने उन सब के लिए बढ़िया भोजन वगैरह की व्यवस्था की। हर तरह की सुविधाएँ जुटाई
और हजारों रुपये उन्हें देने लगे। ____ मंदिर का कार्य पूरा हो गया। दण्डनायक ने पाटन जाकर पूज्य गुरुदेव को विनती की 'गुरुदेव, गूर्जरेश्वर के साथ आप भरुच की धरती को पावन कीजिए और नवनिर्मित जिनालय में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिष्ठा भी आप ही के वरद हस्त से होगी।' __ आचार्यदेव, राजा कुमारपाल और साथ हजारों स्त्री-पुरुषों के संघ ने भरुच की ओर प्रयाण किया। रास्ते में आनेवालें गाँवों के सैंकड़ों स्त्री पुरुष उस संघ में शामिल होने लगे। __'भरुच में 'समड़ी विहार' का जीर्णोद्धार हुआ है... और उस नूतन जिनालय में भगवान मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिष्ठा करवाने के लिए आचार्यदेव और महाराजा कुमारपाल संघ के साथ भरुच पधार रहे हैं।' पूरे गुजरात में यह समाचार फैल गये।
० ० ० भरूच में प्रभु प्रतिष्ठा का उत्सव रचाया गया। शुभ मुहूर्त और पावन घड़ी में आचार्यदेव के वरद हाथों २० वें तीर्थंकर
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