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जिनमंदिरों का निर्माण
गुरुदेव ने कहा : - दो मंदिर सफेद-धवल पत्थर के बनाने चाहिएँ। - दो मंदिर काले पत्थर के बनाने चाहिएँ। - दो मंदिर लाल पत्थर के बनाने चाहिएँ । - दो मंदिर नीले पत्थर के बनाने चाहिएँ। - सोलह मंदिर पीले पत्थर के बनाने चाहिएँ ।
इन मंदिरों में उसी रंग के पत्थर से निर्मित चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ बिराजमान करनी चाहिएँ ।'
राजा को इशारा काफी था। शिल्पियों का पूरा काफिला आ पहुँचा पाटण की धरती पर | चौबीस मंदिर के लिए उपयुक्त जगह पसंद कर ली गई। नक्शा बन गया । खाका रचा गया। इधर खदान में से पत्थर आने लगे। पवित्र मुहूर्त में मंदिरों का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
चौबीस मंदिरों में चौबीस तीर्थंकर भगवंतों की प्रतिमाएँ स्थापित हो गई। तत्पश्चात् चार मंदिर शाश्वत् तीर्थंकरों के बनाये गये। __पहला भगवान ऋषभदेव का, दूसरा चन्द्राननस्वामी का, तीसरा वारिषेण भगवान का, चौथा वर्धमानस्वामी का।
इसके बाद राजा ने चार मंदिर और बनाये। पहले मंदिर में रोहिणी देवी की प्रतिष्ठा की गई। दूसरे मंदिर में श्रुतदेवी सरस्वती की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई। तीसरे मंदिर में सुन्दर अशोकवृक्ष की स्थापना की गई। और चौथे मंदिर में गुरुदेव श्रीहेमचन्द्रसूरिजी की चरणपादुका स्थापित की गई।
इस तरह ३२ जिनमंदिरों का निर्माण करके राजा कुमारपाल ने पाटन की शोभा में तो चार चाँद लगाये ही... अपने पापों का प्रायश्चित भी पूर्ण किया।
० ० ० एक दिन की बात है।
गुरुदेव के चरणों में राजा कुमारपाल बैठे हुए हैं। राजा अपने जीवन की कुछ एक घटनाओं का बयान कर रहे हैं। गुरुदेव शांति से सुन रहे हैं। राजा अपने गर्दिश के दिनों की दास्तान सुनाते हुए एक दुर्घटना याद करते हैं। ___ 'प्रभु, सिद्धराज के सैनिकों से अपने आपको छुपाता हुआ मैं अरावली की पहाड़ियों में भटक रहा था। तारणदेवी के मंदिर के पास घटादार वृक्षों के बीच
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