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प्रवचन- ८०
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जाकर भोजन करने का फैशन चल पड़ा है... छुट्टी के दिन । घर में बने भोजन से होटल का भोजन ज्यादा 'स्वीट' लगता है न? परन्तु खर्च कितना आता है ? चार व्यक्ति का परिवार होटलों में जाकर एक बार भोजन लेता है तो सौ रुपये पूरे हो जाते हैं। बड़ी 'फाइव स्टार' होटलों में जायें तो चाय-पानी में ही सौ रुपये खर्च हो जायँ न ?
बंबई-अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों में और कुछ छोटे शहरों में भी, बाजार में खड़े खड़े पाव-भाजी खाने का फैशन चल पड़ा है, वह भी रात्रि के समय । आर्थिक दृष्टि से सोचा जाय तो यह सारा खर्च फालतू होता है। धार्मिक दृष्टि से तो उचित है ही नहीं । रात्रिभोजन का दोष लगता ही है। जमीनकन्द-भक्षण का दोष भी लगता है ।
कई परिवारों में ऐसा देखा जाता है कि घर में खाने-पीने का जितना खर्च होता है, इससे ज्यादा खर्च घर से बाहर खाने-पीने में लगता है। घर से बाहर खाने-पीने में अभक्ष्य भोजन बढ़ा । रोग भी बढ़े। लोगों का शरीर - स्वास्थ्य कितना बिगड़ने लगा है ? इससे दवाइयों का खर्च बढ़ गया है। स्पर्श भी खतरनाक हो सकता है :
• स्पर्शेन्द्रिय की तृप्ति होती है प्रिय और अनुकूल स्पर्शसुख से । पुरुष को स्त्री के स्पर्श से और स्त्री को पुरुष के स्पर्श से सुख का अनुभव होता है। गृहस्थ जीवन में यह सर्वथा वर्ज्य नहीं माना गया है । साधुजीवन में यह सुख सर्वथा वर्ज्य माना गया है।
O माता-पिता करुणा से, वात्सल्य से अपनी संतानों को स्पर्श करते हैं, यह स्पर्श निषिद्ध नहीं है। वैसे, निर्विकार भाव से स्त्री स्त्री को स्पर्श करे, पुरुष पुरुष को स्पर्श करे, वह भी निषिद्ध नहीं है । विजातीय का स्पर्श भी, निर्विकार भाव से किया जाय तो वर्ज्य नहीं है। विजातीय स्पर्श विकारों कोमनोविकारों को पैदा होने में निमित्त बनता है, इसलिए विशेष प्रयोजन के बिना विजातीय को स्पर्श नहीं करना चाहिए ।
० विजातीय-स्पर्श 'यौन-संबंध' की दृष्टि से सर्वथा वर्ज्य नहीं माना गया है। पुरुष का अपनी पत्नी के साथ यौन-संबंध वर्ज्य नहीं है, परन्तु स्व-पत्नी के अलावा दूसरी सभी स्त्रियों के साथ का यौन-संबंध वर्ज्य है, निषिद्ध है। यौन-संबंध की सार्थकता मात्र सुप्रजनन की दृष्टि से ही है । परन्तु इसमें तीव्र कामुकता नहीं होनी चाहिए। कामुकता, स्त्री और पुरुष दोनों के लिए
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