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प्रवचन-८० साधन प्राप्त करने के लिए इतना ही आर्थिक व्यय करना चाहिए कि जिससे दरिद्रता घेर न ले-यह सोचना चाहिए-धार्मिक दृष्टि से यह सोचना चाहिए कि कौन-से वैषयिक सुख भोगने चाहिए और कौन-से वैषयिक सुख नहीं भोगने चाहिए। - वैसे गीत सुनने चाहिए, वैसी बातें सुननी चाहिए कि जिससे आपके मन में निर्मल, पवित्र भाव जगें। वैसे गीत और वैसी बातें नहीं सुननी चाहिए कि जिससे मन में दुष्ट भाव जगें। मन की पवित्रता नष्ट हो जाय ।
वैसे चित्र, वैसे दश्य, वैसे प्रसंग देखने चाहिए कि जिससे श्रद्धा दृढ़ बने, ज्ञान की वृद्धि हो और चरित्र उज्ज्वल हो। वैसे चित्र वगैरह नहीं देखने चाहिए कि जिससे श्रद्धा निर्बल हो, ज्ञान का नाश हो और चरित्रहीनता प्राप्त हो। __सभा में से : सुनने का और देखने का हमारे बस में तो है नहीं! रेडियो स्टेशन से जो प्रसारित होता है वह सब सुनते हैं और टी.वी. में भी जो कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, वे ही हम लोग देख सकते हैं। रेडियो और टी.वी. तो आज घर-घर में आ गये हैं। रेडियो और टी.वी. प्रदूषण हैं :
महाराजश्री : पहली बात तो यह है कि आपके घरों में रेडियो और टी.वी. होने ही नहीं चाहिए। ज्यादातर रेडियो स्टेशन अच्छे संस्कारी कार्यक्रम बहुत कम प्रसारित करते हैं। घर में छोटे-बड़े सभी होते हैं न? ऐसे गंदे गीत बजते रहते हैं कि बच्चों पर बुरे प्रभाव पड़ते ही हैं। बच्चे भी गंदे गीत गाते रहते हैं। टी.वी. पर भी अच्छे सुरुचिकर कार्यक्रम कितने प्रतिशत आते हैं? कार्यक्रम प्रसारित करनेवाले लोकरुचि का विचार करते हैं...लोकरुचि को परिशुद्ध करने का नहीं सोचते हैं। ज्यादातर लोगों की रुचि 'सुरुचि' नहीं होती है, निम्नस्तर की...वासनाप्रधान अश्लील रुचि होती है। यौनवृत्ति को उत्तेजित करनेवाले द्रश्य, टी.वी. पर ज्यादा दिखाई देते हैं न? हम लोग तो नहीं देखते हैं परन्तु आप लोगों से ही सुनी हुई बात है।
सभा में से : सच बात है, टी.वी. पर पिक्चर भी वैसे ही ज्यादा बताये जाते हैं... स्त्री-पुरुष के यौन-संबंधों को विकृत रूप में प्रदर्शित किया जाता है। ___ महाराजश्री : इसलिए हम लोग कहते रहते हैं कि जिस परिवार को अपने सुसंस्कारों को सुरक्षित रखना है, संवर्द्धित करना है, उस परिवार को अपने घर में टी.वी. नहीं रखना चाहिए। दूसरों के घर जाकर भी नहीं देखना चाहिए | परन्तु यह उपदेश ९९ प्रतिशत लोगों के दिमाग में नहीं जंच रहा है।
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