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प्रवचन-७९ किसी भी भिक्षुक को एक सेर अनाज देकर ही भोजन करता है। एक दिन, जटाशंकर को एक भी भिक्षुक नहीं मिला। उसको भूख लगी थी...घर के बाहर खड़ा वह भिक्षुक को खोज रहा था...। एक गरीब किसान सा व्यक्ति वहाँ से गुजर रहा था । जटाशंकर ने उसको अपने पास बुलाकर कहा : 'भैया, यह एक सेर अनाज तू ले जा, आज की रोटी बन जायेगी।'
किसान ने कहा : 'घर पर रोटी तैयार है महाराज, क्षमा करे, मुझे अनाज नहीं चाहिए।'
जटाशंकर बोला : 'आज नहीं तो कल काम आयेगा यह अनाज...।' किसान ने कहा : 'कल के लिए और परसों के लिये भी मेरे पास पर्याप्त अनाज है।'
जटाशंकर ने कहा : 'उसके बाद आने वाले दिनों में काम आयेगा...।' किसान ने हँसते हुए कहा : 'महाराज, आने वाले दिनों की चिन्ता मैं नहीं करता हूँ। वह चिन्ता तो भगवान करेगा...। मैं तो कल की भी चिन्ता नहीं करता हूँ...।' किसान चला गया। जटाशंकर किसान की बातें सुनकर गहरे विचारों में खो गया। विचारों के गहरे पानी से जब वह बाहर निकला तब उसकी सारी की सारी अशान्ति धुल गई थी। पुत्र-पौत्रों की चिन्ताओं से उसको मुक्ति मिल गई थी। अनीति बढ़ रही है : __ कुछ वर्षों से अर्थोपार्जन में अनीति, अन्याय और बेईमानी तो बढ़ी ही है। चोरी और 'स्मगलिंग' तस्करी काफी बढ़े हैं। राष्ट्रनिषिद्ध व्यापार लोग धड़ल्ले से करते हैं। पुण्यकर्म का उदय जिसका होता है वे लोग गलत रास्ते लाखोंकरोड़ों रुपये पा लेते हैं जरूर, परन्तु उन लोगों को भय इतना ज्यादा होता है कि :
० शान्ति से नींद नहीं आती है। ० शान्ति से भोजन नहीं कर सकते हैं। ० अति भय से 'हार्ट-एटेक' और 'ब्रेइन हेमरेज' जैसे दर्द होते हैं। ० कभी भी जेल में जाना पड़ सकता है। ० सारी संपत्ति चली भी जा सकती है। अर्थोपार्जन ज्यादा करनेवालों को स्वार्थी लोग, अपना स्वार्थ सिद्ध करने के
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