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प्रवचन- ७८
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० राजा अकबर ने आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी से धर्मतत्त्व पाया और आजीवन उनकी और उनके शिष्यों की सेवा की ।
O महामंत्री पेथड़शाह ने आचार्य श्री धर्मघोषसूरिजी से धर्मतत्त्व पाया और आजीवन उनकी सेवा करते रहे।
० राजा वनराज ने, आचार्य श्री शीलगुणसूरिजी से धर्मतत्त्व पाया और आजीवन उनकी सेवा करते रहे ।
ऐसे तो अनेक प्रसिद्ध - अप्रसिद्ध श्रावक-श्राविकाओं के नाम जैन - इतिहास की परम्परा में भरे पड़े हैं । जीवन को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करना है, व्रत-नियमों की सुवास से सुवासित करना है, तो ज्ञानी और व्रती महापुरुषों की सेवा करनी ही पड़ेगी। आप ऐसी सेवा करके अपने-अपने जीवन को धन्य बनायें, यही मंगल कामना करता हूँ ।
आज बस, इतना ही ।
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