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प्रवचन-७५
तो दुनिया आपकी प्रशंसा करेगी ही। लोकयात्रा में ये तीन बातें काफी महत्त्व रखती हैं। इस विषय में एक ऐतिहासिक घटना सुनाकर प्रवचन पूर्ण करूँगा। राजकुमार की करुणार्द्रता :
जब गुजरात में राजा भीमदेव राज्य करता था, उस समय की बात है। एक साल बिल्कुल वर्षा नहीं हुई। अकाल पड़ा। किसान लोग, राजा को कर नहीं दे पाये । राजा ने उन किसानों को जेल में डाल दिया । राजपुरुष किसानों को बहुत परेशान करते थे। राजकुमार मूलराज ने यह स्थिति देखी। उसकी आँखों में आँसू आ गये| उसने किसानों को कष्ट से मुक्त कराने का निर्णय किया।
मूलराज ने, राजा भीमदेव को अश्वों का खेल दिखाकर खुश कर दिया। राजा ने कुमार से कहा : 'चाहिए वह वरदान माँग ले।' । कुमार ने कहा : 'वरदान अभी आपके भंडार में ही रहने दो।' राजा ने पूछा : 'क्यों?' कुमार ने कहा : 'मिलने की आशा नहीं है।' राजा ने पूछा : 'ऐसी कौन-सी बात है, तू जो मांगेगा वह मैं दूंगा।' ।
कुमार ने कहा : 'किसानों से राज्य का कर लेना बंद किया जाय | मुझ से किसानों के दुःख देखे नहीं जातें...।'
राजा की आँखों से हर्षाश्रु उभर आये । राजा ने तुरन्त ही राज्य में घोषित करवा दिया। किसानों को जेल से मुक्त कर दिया गया । सारे राज्य के किसान खुश हो गये। राजकुमार मूलराज की हर जबान पर प्रशंसा होने लगी।
दुर्भाग्य था राज्य का, कि राजकुमार जिंदा नहीं रहा। तीसरे ही दिन उसकी अकाल-मृत्यु हो गई। सारा गुजरात शोकमग्न हो गया। 'उचित लोकयात्रा' का विवेचन समाप्त करता हूँ। आज बस, इतना ही।
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