________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२९
प्रवचन-७५
अय्यु और गुल्ला परस्पर प्रेम से मिले। एक-दूसरे को गले लगाया। दोनों आपस में पक्के दोस्त बन गये। गाँव के लोगों ने अय्यु के लिए बड़ा सुन्दर मकान बनवा दिया।
अय्यु की उचित लोकयात्रा को समझे न? समझ लो - १. अय्यु ने अपने पिता भूतय्या की गलतियों को दोहराया नहीं।
२. उसने लोगों के मन को समझा - 'लोगों के मन में मेरे प्रति दुश्मनी है, वह मुझे मिटानी है। ऐसा मानसिक निर्णय किया।
३. उसने लोगों के साथ दुर्व्यवहार करना बंद किया। ४. लोगों से जमीन का किराया लेना बंद किया। ५. अपने प्रति कट्टर शत्रुता रखनेवाले गुल्ला पर उपकार करता चला। ६. 'मैंने ऐसे-ऐसे उपकार किये...करता हूँ...' ऐसी बातें उसने कभी नहीं कीं।
७. अनेक वर्षों से चली आती 'पशुबलि' की प्रथा को बंद किया। ८. धर्मविरुद्ध कार्य का त्याग करने में उसने लोगों के विरोध की परवाह नहीं की।
९. जीवन में कष्ट आने पर भी उसने न शिकायतें की, न किसी से याचनाएँ की।
१०. गंभीरता से, उदारता से एवं सहनशीलता से उसने उचित लोकयात्रा में सफलता पायी। कर्म के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लें :
लोकयात्रा की सफलता-निष्फलता में यानी लोगों से यश मिलने में और अपयश मिलने में एक अदृश्य कारण है : शुभ-अशुभ कर्म का उदय | एक होता है 'यश:कीर्ति नामकर्म ।' इस कर्म के उदय से मनुष्य को लोगों से यश मिलता है। दूसरा कर्म होता है 'अपयश-नामकर्म ।' इस कर्म के उदय से मनुष्य की अपकीर्ति होती है।
परन्तु यश-अपयश की चिन्ता किये बिना, जो मनुष्य ज्ञानीपुरुषों के मार्गदर्शन के अनुसार जीवन जीता है, उचित लोकयात्रा करता है, वह मनुष्य अवश्य 'यश-कीर्ति नामकर्म' बाँधता है। चूंकि ऐसा व्यक्ति :
For Private And Personal Use Only